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चलती है। बाद में मोड़ आते हैं। एक मोड़, दो मोड़, तीन मोड़ आते हैं। मोड़ पर आत्मा गलत श्रेणी पर (मार्ग पर) चली न जायं इसलिए वहाँ जीव का 'आनुपूर्वीनामकर्म' खड़ा रहता है। जीव को जहाँ जाना है, उस मार्ग पर (श्रेणी) चढ़ाता है। 'ट्राफिक पुलिस का काम करता है। हर मोड़ पर आनुपूर्वी-कर्म हाजिर रहता है! प्रत्येक जीव का अपना-अपना यह 'ट्राफिक-पुलिस' होता है। यानी प्रत्येक जीव का आनुपूर्वी कर्म बंधता है। अपनी-अपनी निर्धारित गति के अनुसार यह कर्म बंधता है। गति चार हैं इसलिए यह कर्म भी चार प्रकार का होता है।
१. नारक आनुपूर्वीः नरक में जाता हुआ जीव, आकाशमार्ग से गुजरता है, जहाँ मोड़ आता है, वहाँ यह कर्म जीव को रुकने नहीं देता है, अथवा गलत रास्ते पर जाने नहीं देता है। यह कर्म जीव को नरक की ओर मोड़ता है और नरक में पहुंचाता है।
२. देव आनुपूर्वीः जिस जीव ने देवगति का आयुष्यकर्म बाँधा है उसको मृत्यु के बाद आकाशमार्ग से ही देवगति में जाना पड़ता है। जहाँ मोड़ आते हैं, यह कर्म जीव को मार्गदर्शन देता है और देवगति में पहुँचाता है।
३. मनुष्य आनुपूर्वीः जिस जीव ने मनुष्य गति का आयुष्य कर्म बाँधा है, वह मृत्यु के बाद मनुष्यगति में, जहाँ उसको उत्पन्न होना है, उधर जाता है। आकाशमार्ग से जाता है। मोड़ तो आते ही रहते हैं, उस मोड़ पर यह कर्म उदय में आता है, और जीव को मनुष्यगति में जहाँ... जिस मनुष्यक्षेत्र में... जिस देश में... जिस नगर में... जिस घर में... जिस जगह जन्म लेना होता है, वहाँ पहुँचाता है! ज्यादा से ज्यादा तीन मोड़ आते हैं।
४. तिर्यंच आनुपूर्वीः जिस जीव ने तिर्यंचगति का आयुष्य कर्म बाँधा है, उसको, मृत्यु के बाद निश्चित जगह जाना होता है। आकाशमार्ग से जीव
गुजरता है। मोड़ आते हैं रास्ते में | यह क जीव को मार्गदर्शन करता हुआ उत्पत्ति-जगह पहुँचाता है! ___ कुदरत के साम्राज्य में सब काम कितने व्यवस्थित हैं चेतन? पूर्ण ज्ञानी पुरुषों के बिना, ऐसी अगोचर बातें कौन बता सकता है? चेतन, ज्यादा से ज्यादा ४ अथवा ५ समय में जीवात्मा दूसरी गति में, उत्पत्ति-स्थान में पहुँच जाती है। आकाशमार्ग से वह जाती है... रास्ते में मोड़ आते हैं, कभी दो, कभी तीन! बस, ज्यादा नहीं! ये बातें निश्चित और सत्य हैं।
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