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हैं किस कर्म के प्रभाव से?
चेतन, नामकर्म के १०३ प्रकार हैं, उन प्रकारों में एक पर्याप्ति नाम कर्म है। ‘पर्याप्ति के विषय में विस्तार से बाद में लिखूगा। आज तो मात्र शरीर और शरीर की हड्डियों के विषय में ही लिखता हूँ।
पर्याप्ति का अर्थ होता है शक्ति।
१. आत्मा जिस शक्ति से आहार के पुद्गल ग्रहण करता है वह शक्ति है आहार-पर्याप्ति।
२. जिस शक्ति से जीव शरीर बनाता है, वह है शरीर-पर्याप्ति। ३. जिस शक्ति से जीव इंद्रियों की रचना करता है वह है इंद्रिय-पर्याप्ति।
४. जिस शक्ति से जीव श्वासोच्छवास लेने की प्रक्रिया का निर्माण करता है, वह है श्वासोच्छ्वास पर्याप्ति।
५. जिस शक्ति से जीव भाषा-वर्गणा के पुद्गल ग्रहण कर, बोलने की शक्ति पाता है, वह होती है भाषा-पर्याप्ति।
६. जिस शक्ति से जीव सोचने-विचार करने की क्षमता प्राप्त कर मन बनाता है, वह होती है मनःपर्याप्ति।
चेतन, शरीर एवं हड्डियों का निर्माण दूसरी शरीर-पर्याप्ति से होता है। यानी पर्याप्त-नाम कर्म के उदय से शरीर रचना होती है। सभी जीवों की एक समान ६ पर्याप्ति नहीं होती है।
- एकेंद्रिय जीवों को चार (१ से ४) पर्याप्ति होती है। - बेइंद्रिय-तेइंद्रिय-चउरिंद्रिय जीवों को १ से ५ पर्याप्ति होती हैं। - पंचेंद्रिय जीवों को सामान्यतया १ से ६ पर्याप्ति होती हैं।
- जो जीव जन्मता है वह जीव १ से ३ पर्याप्ति तो पूर्ण करता ही है। तीन पर्याप्ति पूर्ण किए बिना कोई जीव मरता नहीं है।
- जिन जीवों का 'पर्याप्त-नाम कर्म' नहीं होता है, 'अपर्याप्त नाम कर्म' उदय में आता है, वे जीव अपने योग्य पर्याप्ति पूर्ण किए बिना मर जाते हैं!
- आहार, शरीर और इंद्रिय बनाने के लिए मनुष्य 'औदारिक वर्गणा' के पुद्गल ग्रहण करता है,
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