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पत्र :10
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प्रिय चेतन, धर्मलाभ, तेरा पत्र मिला, आनंद हुआ। गत पत्र से तुझे बहुत संतोष हुआ, जानकर मेरा मन हर्षित हुआ। तेरा नया प्रश्न विषय के अनुरूप है।
'शरीर का आधार शरीर की हड्डियाँ हैं। हड्डियों की जोड़ होती हैं। किसी मनुष्य की हड्डियाँ कमजोर होती हैं, किसी की मजबूत होती हैं। किसी मनुष्य की हड्डियाँ की जोड़ (joints) कमजोर होती हैं, किसी की मजबूत होती हैं, इसका कारण क्या होता है? वर्तमानकालीन शरीर-विज्ञान भी इस विषय में कारण बताता है, परंतु सर्वत्र वह कार्य-कारणभाव देखने में नहीं आता है। आप "कर्म-विज्ञान' के माध्यम से कारण बताने की कृपा करें।' __चेतन, शरीर-रचना की एक-एक बात को ज्ञानी पुरुषों ने स्पर्श किया है। एक-एक बात का कारण बताया है। बुद्धि स्वीकार करे, वैसे कारण बताए हैं। कर्म-विज्ञान वास्तव में परिपूर्ण विज्ञान है।'
चेतन, शरीर हड्डियाँ की मजबूती और कमजोरी का नियामक कर्म है संहनन-नामकर्म । जीव स्वयं यह कर्म बाँधता है और उसी कर्म के अनुसार दूसरे जन्म में उसको हड्डियाँ प्राप्त होती हैं। उसी कर्म के आधार पर हड्डियाँ की जोड़ प्राप्त होती है।
संहनन (संघयण) नामकर्म छः प्रकार का है१. वज्र-ऋषभ-नाराच,
२. ऋषभ-नाराच, ३. नाराच,
४. अर्ध नाराच, ५. किलिका, और
६. सेवार्त. हालाँकि ये छ: प्रकार, शरीर की हड्डियों की जोड़ के विषय में हैं।
१. दो हड्डियाँ परस्पर चिपककर रहती हैं, उसके ऊपर हड्डी की ही पट्टी लगी रहती है। उस पट्टी पर चौथी हड्डी का कील लगा हुआ रहता है। यह कील तीनों हड्डियाँ को बिंधकर रहती है। इससे दो हड्डियों की जोड़ अत्यंत मजबूत होती है। हथोड़ा मारने से भी जोड़ टूटती नहीं है। इस वज्र-ऋषभ-नाराच
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