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रस-नाम कर्म के पांच प्रकार होते हैं - मधुर, लवण, काषायिक, तिक्त और कटु । हर जीव के अपने-अपने रस-नामकर्म के अनुसार उसको शरीर का रस मिलता है।
स्पर्श-नाम कर्म के भी आठ प्रकार होते हैं - मृदु-कर्कश, शीत-उष्ण, लघु-गुरु और स्निग्ध-रुक्ष । अपने-अपने कर्म के अनुसार जीव को स्पर्श की प्राप्ति होती है। __ चेतन, शरीर-रचना की एक-एक बात जीव के कर्म पर आधारित होती है। आज, बस इतना ही।
- भद्रगुप्तसूरि
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