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संस्थान ।
हुंडक संस्थान वाला शरीर, प्रमाणोपेत नहीं होता। कोई भी अंगोपांग लक्षणयुक्त नहीं होता है।
संस्थान-नामकर्म के उदय से शरीर के इस प्रकार - आकृति के अंगोपांग मिलते हैं। आकृति का नियमन संस्थान- नामकर्म करता है।
चेतन, ‘जीवों में रूप-रंग की असमानता क्यों ?' तेरे इस प्रश्न का समाधान कर, यह पत्र पूर्ण करूँगा ।
शरीर के अंगोपांग की असमानता का कारण तेरी समझ में आ जाएगा। रूपरंग की असमानता का कारण है वर्ण-नामकर्म ।
वर्ण पाँच प्रकार के बताए गए हैं:
१. रक्त (लाल) २. पीत (पीला) ३. कृष्ण (काला) ४. नील (हरा) ५. श्वेत (सफेद)
जिस जीव ने जैसा वर्ण-नाम कर्म बाँधा हुआ होता है, उसके शरीर का रंग वैसा होता है। यानि शरीर के वर्ण का आधार वर्ण नाम कर्म होता है।
कोई गोरा होता है, कोई काला होता है,
किसी की चमड़ी लाल होती है, किसी की पीली... इसका कारण होता है जीव का वर्ण-नाम कर्म ।
चेतन, जिस प्रकार वर्ण - नाम कर्म होता है वैसे गंध - नामकर्म भी होता है । इस कर्म के दो प्रकार हैं:
- सुगंध-नाम कर्म।
- दुर्गंध-नाम कर्म ।
हाँ, शरीर की सुगंध-दुर्गंध इस नामकर्म पर आधारित होती है। तीर्थंकर, पद्मिनी स्त्री, चक्रवर्ती वगैरह के शरीर सुगंधित होते हैं, कस्तूरीमृग का शरीर सुगंधी होता है, मच्छीमार एवं सूअर वगैरह के शरीर दुर्गंधी होते हैं। पुष्प के जीव प्रायः सुगंधी होते हैं परंतु प्याज, लसून वगैरह दुर्गंधी होते हैं। इस प्रकार वनस्पति के जीवों की सुगंध - दुर्गंध भी गंधनाम कर्म पर निर्भर होती है।
जिस प्रकार जीवात्मा के शरीर का वर्ण होता है, गंध होती है, वैसे शरीर का रस भी होता है ! शरीर का स्पर्श भी होता है ।
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