________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www.kobatirth.org
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
शस्त्रों के द्वारा एक-दूसरे के टुकड़े कर देते हैं, जिस प्रकार बूचड़खाने में पशु के टुकड़े कर दिए जाते हैं।
सम्यग्दृष्टि नारकी जीव पीड़ा को तात्विक चिंतन से सहन करते हैं और कर्मक्षय करते हैं।
मिथ्यादृष्टि नारकी-जीव अति क्रोधावेश से परस्पर कष्ट देते हैं और नए पाप कर्म बाँधते रहते हैं।
परमाधामी देव नारकी-जीवों को अनेक प्रकार की पीड़ा देते हैं। ऐसी नरकगति में ले जानेवाला कर्म होता है नरक-गति नामकर्म।
चेतन, तिर्यंचगति में ले जानेवाला कर्म हैं तिर्यंचगति - नामकर्म । पशु-पक्षी को तिर्यंच कहते हैं।
तिर्यंच, एकेंद्रिय से पंचेंद्रिय तक होते हैं। तिर्यंचगति में अनंत जीव होते हैं। ___ पृथ्वीकाय, अपकाय, तेउकाय, वायुकाय और वनस्पतिकाय के जीव तिर्यंच कहलाते हैं।
तिर्यंच, चतुष्पद होते हैं, खेचर होते हैं, ऊरपरिसर्प और भूजपरिसर्प होते हैं। तिर्यंचगति में सब से ज्यादा भय-संज्ञा और आहार-संज्ञा होती है।
चेतन, मनुष्यगति में ले जानेवाला कर्म मनुष्यगति-नामकर्म है। मनुष्य का जन्म ढ़ाई द्वीप में ही होता है। जंबूद्वीप, घातकी खंड और आधा पुष्करवर द्वीप | ढ़ाई द्वीप में ही मनुष्यगति है।
मनुष्य ही संपूर्ण आध्यात्मिक विकास कर, मुक्ति को पा सकता है। मनुष्य ही तीर्थंकरत्व पा सकता है। मनुष्य सातवीं नरक में भी जा सकता है।
चेतन, देवगति में ले जानेवाला कर्म देवगति-नामकर्म होता है। मैं तुझे देवगति के विषय में कुछ बातें बताता हूँ|
देव चार प्रकार के होते हैं: १. भवनपति, २. व्यंतर, ३. ज्योतिषी और ४. वैमानिक । भवन पति दस प्रकार के होते हैं: असुर, नाग, सुपर्ण, विद्युत, अग्नि, द्वीप, उदधि, दिशि, वायु, स्तनित।
१५९
For Private And Personal Use Only