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कभी जागा नहीं।
निरूपक्रम आयुष्यवाले मनुष्यों को आघात लगते हैं, परंतु आयुष्य कर्म तोड़ नहीं सकते। आयुष्य कर्म प्रबल होता है । उनका जितना आयुष्य होता है, उतना परिपूर्ण आयुष्य वह भोगता है और बाद में मरता है । देवलोक के देवों का आयुष्य कर्म निरूपक्रम होता है, वैसे नरक के जीवों का आयुष्य भी निरूपक्रम होता है। चेतन, अभी यहाँ इस भरतक्षेत्र में अपना आयुष्य सोपक्रम होता है। ऐसी परिस्थिति में हमें आघात नहीं लगे वैसी निर्भयता सिद्ध कर लेनी चाहिए । 'कर्मसिद्धांत' के अध्ययन से और आत्मा की अमरता के ज्ञान से वैसी निर्भयता प्राप्त होती है। निर्भय मनुष्य को आघात कम लगते हैं। हाँ, अकस्मात तो किसी भी व्यक्ति का हो सकता है।
तू कुशल रहना, पत्र देना,
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- भद्रगुप्तसूरि