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पत्र :
प्रिय चेतन,
धर्मलाभ, तेरा पत्र पढ़कर आनंद हुआ।
निद्रा के विषय में तेरे मन का समाधान हुआ-जानकर संतोष हुआ । तेरा नया प्रश्न है उच्च-नीच के विषय में:
'हजारों वर्षों से किसी जाति विशेष को उच्च माना गया है, किसी जाति विशेष को नीच माना गया है। क्या यह भेद मनुष्यकृत है या कर्मकृत?'
चेतन, उच्च-नीच का भेद कर्मकृत है, मनुष्य कृत नहीं है। जिस जीव का उच्च गोत्र कर्म का उदय होता है वह उच्च कहलाता है और जिस जीव का नीच गोत्र कर्म का उदय होता है वह, नीच कहलाता है, हीन जाति का कहलाता है।
जैसे मनुष्य की दुनिया में कोई उच्च कहलाता है, कोई नीच कहलाता है वैसे पशु-पक्षी की दुनिया में उच्च-नीच के भेद असंख्य वर्षों से प्रचलित हैं। हंस उच्च कहलाता है, कौआ नीच कहलाता है। हाथी उच्च जाति का कहलाता है, गधा नीच जाति का कहलाता है।
चेतन, उच्च-नीच का भेद अनादिकालीन है और अनंत काल पर्यंत रहनेवाला है। जीव जैसे कर्म बाँधता है, वैसे उसको उच्चता अथवा नीचता की स्थिति प्राप्त होती है। किस जाति में जन्म मिलता है - यह निर्णय - जाति-नामकर्म करता है, परंतु उच्चता अथवा नीचता (दुनिया की दृष्टि में) प्राप्त होती है गौत्र कर्म की वजह से। उच्च जाति में जन्मा हुआ मनुष्य, नीच गोत्र कर्म के उदय से 'नीच' कहलाता है, वैसे नीच जाति में जन्मा
हुआ मनुष्य, उच्च गोत्र कर्म के उदय से 'उच्च' कहलाता है। उच्च-नीच जाति दुनिया के हर देश में होती है। जीव अपने-अपने जाति नाम कर्म के हिसाब से उच्च अथवा नीच जाति में जन्म पाता है।
वैसे अपने-अपने ‘गोत्र कर्म' के हिसाब से जीव उच्च या नीच कहलाता है। चेतन, यदि मनुष्य उच्च कहलाता है तो उसका उच्च गोत्र कर्म का उदय
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