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चाहिए। इस 'दर्शनावरण' कर्म बाँधने के हेतु वे ही हैं जो ज्ञानावरण कर्म के बंध हेतु बताए हैं। परंतु पाँच प्रकार की निद्रा के बंध हेतु मुख्य रूप से 'प्रमाद' है। प्रमाद के अनुरुप निद्रादर्शनावरण कर्म बँधता है।
- अति अल्प प्रमाद से निद्रा, - अल्प प्रमाद से निद्रा-निद्रा, - ज्यादा प्रमाद से प्रचला, - अति प्रमाद से प्रचला-प्रचला, और तीव्रातितीव्र प्रमाद से थिणद्धि-दर्शनावरण कर्म बँधता है।
चेतन, पाँच प्रकार के प्रमाद तू जानता है। तीर्थंकर परमात्मा एक क्षण का भी प्रमाद नहीं करने का उपदेश क्यों देते हैं, तेरी समझ में आया न?
हर मनुष्य के जीवन व्यवहार में निद्रा महत्त्वपूर्ण अंग है। कम निद्रावाला अप्रमादी मनुष्य श्रेष्ठ पुरुषार्थ कर सकता है। पुरुषार्थ से सफलता के सोपान चढ़ता जाता है।
निद्रा-दर्शनावरण कर्म का क्षयोपशम करने के कुछ उपाय तीर्थंकरों ने बताए हैं। उसमें श्रेष्ठ उपाय बताया गया है परमात्मभक्ति का | परमात्म-प्रीति के साथ की हुई परमात्मशक्ति दर्शनावरण-कर्म का क्षयोपशम करती है।
चेतन, जीवन में अप्रमत्त बनना है। सदैव जागृत रहना है। धर्मपुरुषार्थ में जागृति और अप्रमत्तता आने पर जीवन में अपूर्व धर्मोल्लास प्रगट होगा।
- भद्रगुप्तसूरि
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