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उपमान प्रमाण, संभव प्रमाण, आगम प्रमाण वगैरह प्रमाण हैं न? अनुमान प्रमाण से 'कर्म' का अस्तित्व और कर्म का प्रभाव मानना ही पड़ता है। अनुमान यानी तर्क । दूसरों को समझाने के लिए 'तर्क' - अनुमान ही साधन हैं। अनुमान तीन प्रकार के होते हैं -
१. कार्य से कारण का अनुमान, २. कारण से कार्य का अनुमान, ३. सामान्य अनुमान।
सर्वप्रथम, पहले प्रकार का अनुमान समझ लें। गाँव में और गाँव के आसपास बरसात नहीं है, फिर भी गाँव के पास जो नदी बहती है, उस नदी में बाढ़ आती है, तो प्रश्न होता है कि बरसात के बिना नदी में बाढ़ कैसे आई? बाढ़ का कारण बरसात है! बाढ़ प्रत्यक्ष दिखती है, उसका कारण प्रत्यक्ष नहीं दिखता है, तो अनुमान किया जाता है कि नदी के ऊपरवास में बरसात आई होगी। यह हुआ कार्य से कारण का अनुमान।
दूसरा अनुमान होता है कारण से कार्य का अनुमान । कारण जहाँ प्रत्यक्ष दिखता हो, कार्य नहीं दिखता हो, वहाँ कार्य का अनुमान किया जाता है और सभी लोग करते हैं! एक उदाहरण से यह बात समझाता हूँ।
यह बात आकाश में घनघोर बादल घिर आए हैं। तुझे घर से बाहर जाना ज़रूरी है। तू छाता लेकर या 'रेनकोट' लेकर बाहर जाएगा न? तू बरसात का अनुमान करता है। बादल कारण हैं, बरसात कार्य है। बादलों से तू बरसात का अनुमान कर, छाता या रेनकोट लेकर बाहर जाएगा। समझ गया न तू दूसरे प्रकार के अनुमान को?
तीसरा प्रकार सामान्य अनुमान का है।
जंगल में रास्ता भूल गए। सुबह से चलते रहे हैं... मध्याह्न होने पर भी गाँव नहीं दिखता है। थक कर एक वृक्ष के तले बैठ गए। उस समय पूर्व दिशा की
ओर से कुत्तों के भौंकने की आवाज़ आती है... हम अनुमान करते है: पूर्व दिशा में गाँव है। चूंकि बस्ती के बिना कुत्ते नहीं होते हैं, - यह एक सामान्य-साधारण धारणा होती है। हम पूर्व दिशा की ओर चल पड़ते है और प्रायः गाँव के बाहर कुत्ते ही हमारा स्वागत करते हैं। ___ जो वस्तु, जो तत्त्व हमारी इंद्रियों से प्रत्यक्ष नहीं हो सकता है, यानी कान से सुनकर, आँखों से देखकर, नाक से सूंघकर, जीभ से चख कर अथवा हाथ से
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