________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www.kobatirth.org
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
वचन-काया से अवेदी बनना है, मन-वचन-काया से अकषायी बनना है।
चेतन, अवेदी-अकषायी मनुष्यों को वैसे तो अवधिज्ञान प्रकट होता ही है। परंतु नहीं प्रकट होता है तो पहले 'मनःपर्यवज्ञान' प्रकट होता है। बाद में अवधिज्ञान प्रकट होता है। परंतु एक बात निश्चित समझना कि ऐसी आत्माओं को मतिज्ञान एवं श्रुतज्ञान अवश्य होता है। ये दो ज्ञान जिनको होते हैं उनको ही अवधिज्ञान एवं मनःपर्यवज्ञान होता है।
चेतन, पाना है अवधिज्ञान? इस ज्ञान में न मन की आवश्यकता रहती है, न इंद्रियों की। आत्मा ही सीधा ज्ञान पाती है। दूर-दूर देखा जाता है। भूतकाल के कई जन्मों के रहस्य खुल जाते हैं। भविष्य के भेद खुल जाते हैं।
जैसे स्वयं का भूतकाल एवं भविष्यकाल देखने को मिलता है वैसे दूसरे जीवों का भी भूत-भविष्यकाल जान सकते हैं। जानने पर भी राग-द्वेष नहीं होंगे! क्योंकि 'अकषायी' आत्मा को राग-द्वेष नहीं हो सकते । __ चेतन, तेरे प्रश्न का समाधान हो जायेगा। पत्र में ज्यादा तो क्या लिख सकता हूँ? 'अवधिज्ञान' के विषय में वैसे तो चौदह प्रकार से चिंतन किया जा सकता है। 'नंदीसूत्र' एवं 'विशेषावश्यक भाष्य' में विस्तार से पाँचों ज्ञान का वर्णन मिलता है। कभी पढ़ना!
• भद्रगुप्तसूरि
१२५
For Private And Personal Use Only