________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www.kobatirth.org
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
अब, तीन वेदों के बंधहेतु लिखता हूँ। - जो पुरुष अपनी स्त्री में ही संतुष्ट रहता है, परस्त्री का त्याग करता है
(वैसे जो स्त्री अपने पति में ही संतुष्ट रहती है, दूसरे पुरुषों का त्याग
करती है) वह 'पुरुषवेद' बाँधता है। - जिस स्त्री-पुरुष के कषाय तीव्र नहीं होते हैं, मंद होते हैं, वे लोग भी
'पुरुषवेद' बाँधते हैं। - जो स्त्री-पुरुष वक्र-स्वभाव के नहीं होते हैं, सरल प्रकृति के होते हैं वे लोग
'पुरुषवेद' बाँधते हैं। - जो स्त्री-पुरुष अच्छे होते हैं, गुणवान होते हैं, वे स्त्री-पुरुष 'पुरुषवेद' बाँधते हैं। इस कर्म की वजह से वे 'पुरुष' बनते हैं। स्त्री की अपेक्षा पुरुष बनना श्रेष्ठ है। परंतु, दुनिया में हमेशा पुरुष कम रहे हैं, स्त्री की संख्या
ज्यादा हो रही है। - दूसरों के सुखों की ईर्ष्या करने से, - दिन-रात विषाद में डूबे रहने से, - वैषयिक सुखों में गाढ़ आसक्ति रखने से, - असत्य बोलने से, - अति वक्रता से, वक्रतापूर्ण व्यवहार से,
जीव 'स्त्री-वेद' कर्म बाँधता है। यह कर्म ही जीव को स्त्री-रूप प्रदान करता है। मनुष्य-स्त्री बनता है, पशु-स्त्री बनता है और देवलोक में देवी भी बन सकता है जीव।
'नपुंसक-वेद' नो कषाय के बन्धहेतु निम्न प्रकार हैं - - स्त्री-संभोग और पुरुष-संभोग की तीव्र अभिलाषा, - अति उग्र राग-द्वेष - तीव्र कामुकता, और - साध्वी-स्त्री का शीलभंग, इन कारणों से 'नपुंसक-वेद' बंधता है। चेतन, एक-एक नो-कषाय के बंधहेतु बताने के बाद, अब सामान्य रूप से
१०२
For Private And Personal Use Only