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मिलना पिता से पुत्र का!
सारे मगध देश में अभयकुमार की प्रशंसा होने लगी। 'महाराजा ने अभयकुमार को महामंत्री बनाकर अच्छा किया!' प्रजा की जबान पर राजा और महामंत्री-सम्राट श्रेणिक और महामंत्री अभयकुमार की तारीफ होने लगी। धीरे-धीरे अभयकुमार ने जवानी की दहलीज पर पाँव रखे।
उस समय मगधदेश श्रमण भगवान महावीर स्वामी की विहारयात्रा से पावन हो रहा था। जगह-जगह पर भगवान का पधारना होता | वहाँ देवलोक से आकर देव समवसरण की रचना करते | भगवान के १४ हजार शिष्य और ३६ हजार साध्वी-शिष्याएँ थीं। भगवान पर श्रद्धा रखनेवाले लोगों की संख्या करोड़ों में थी। व्रत एवं प्रतिज्ञा अंगीकार करनेवाले श्रावक-श्राविकाएँ थी।
धर्म की तो बसंत-बहार ऋतु खिली हुई थी! भगवान का उपदेश सुनकर कई लोग संसार त्याग कर साधु-साध्वी हो जाते! कई लोग बारह व्रत लेकर श्रावक-श्राविका बनते!
कई लोग अणुव्रत (छोटे-छोटे नियम) लेकर जीवन को संयमित-अनुशासित बनाते। कई लोग ‘सम्यग्दर्शन'-सच्ची समझ व सच्चा ज्ञान प्राप्त करके भगवान के प्रति श्रद्धावान् बन जाते । भगवान महावीर स्वामी इस तरह धर्म का मार्ग बताकर करोड़ों स्त्री-पुरुषों को मोक्ष की राह बताते थे। प्राणीमात्र को सुख के लिए सच्ची राह दिखाते!
विचरण करते हुए भगवान महावीर राजगृही में पधारे। देवों ने नगर के बाहर 'समवसरण' की सुंदर रचना की। धर्म का उपदेश सुनने के लिए समवसरण में देव आये... देवियाँ आई... साधु आये... साध्वीजी आई... राजा आये... प्रजा आई! पशु और पक्षी भी आये!
सिंहासन पर श्रमण भगवान महावीर स्वामी बिराजमान हुए। धर्म का उपदेश दिया। शक्कर और शहद से भी ज्यादा मधुर वह उपदेश था।। __अभयकुमार ने पहली बार ही भगवान के दर्शन किये थे। वह तो भगवान को देखकर, उनका उपदेश सुनकर... गद्गद हो उठा। उसने मन ही मन संकल्प किया :
यही मेरे गुरु! यही मेरे भगवान! अभयकुमार ने समवसरण में कई साधुपुरुषों के दर्शन किये। उसकी
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