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मिलना पिता से पुत्र का!
५८ ___ 'मुझे राजा नहीं होना... आधा राज्य भी मुझे नहीं चाहिए! कुछ भी नहीं चाहिए मुझे! आप मिल गये... यानी सब कुछ मिल गया!'
अभयकुमार के विवेकपूर्ण वचन सुनकर राजा श्रेणिक प्रसन्न हो उठा! 'परंतु पिताजी, हम सब मेरे नाना-नानी की खबर लेने के लिए, कभी-कभी बेनातट को जाएंगे ना? मेरे बगैर उन्हें जरा भी अच्छा नहीं लगता होगा! माँ के बिना उनकी सेवा भी कौन करता होगा?'
अभय की आँखों में आँसू भर आये। सुनंदा ने अभय को अपनी ओर खींच लिया।
इतने में सजाया हुआ पट्टहस्ती लेकर राजपुरुष आ पहुँचे। वादित्र और नगरवासी लोग भी आ पहुँचे थे। श्रेणिक अपनी पत्नी और पुत्र के साथ हाथी पर सवार हुए। धूमधड़ाके के साथ राजगृही में प्रवेश किया।
प्रजा को मालूम हो गया था कि 'कुएँ में से चतुराई पूर्वक अंगूठी निकालनेवाला लड़का और कोई नहीं...
स्वयं महाराजा का ही पुत्र था! महारानी और राजकुमार-दोनों महाराजा के साथ हाथी पर सवार हैं! राजकुमार तो बुद्धि का सागर है, तो महारानी भी खूबसूरती के खजाने जैसी है!' सभी राजमहल में आ पहुँचे। श्रेणिक ने उस दिन पूरे नगर में उत्सव मनाया।
श्रेणिक की राजसभा में ४९९ मंत्री थे। श्रेणिक ने सभी के ऊपर अभयकुमार को महामंत्री बनाया। ४९९ मंत्रियों से राजा ने कहा : ___'मंत्रीगण, मैं अभयकुमार को महामंत्री बना रहा हूँ। परंतु तुम्हें तो उसे दूसरा राजा ही समझना है। उसकी छोटी उम्र देखकर उसका अनादर या उपेक्षा मत करना। आदमी उम्र से बूढ़ा हो सकता है... महान नहीं! महान तो ज्ञान और बुद्धि के संगम से होता है!'
४९९ मंत्रियों ने महाराजा की आज्ञा को सिर पर चढ़ाया। राजा ने अभयकुमार के लिए बड़े-बड़े पंडितों को नियुक्त किया । शस्त्रकला और शास्त्रकला में अभयकुमार होशियार होने लगा। वह ४९९ मंत्रियों को निठल्ले बैठने नहीं देता है। उसने प्रजा की सुख-सुविधा बढ़ाने की योजना बनाई। राज्य की व्यवस्था को ज्यादा चुस्त और दुरूस्त किया। दुश्मन राजाओं को युद्ध किये बगैर बस में किया।
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