________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www.kobatirth.org
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
५०
अभयकुमार
धन सेठ ने सुनंदा के पास से अभय को लेते हुए कहा : 'बेटी... तेरा यह लाड़ला तो सचमुच ही गोपालकुमार की प्रतिकृति ही है! उसकी आँखें... नाक... कान... चेहरा... सब कुछ गोपालकुमार के अनुरूप ही है।' ___ 'सच बात है आपकी बापू!' सुनंदा की आँखें भर आई... उसका स्वर भीग उठा था।
धन सेठ यह देखकर चिंतित हो उठे। उन्होंने कहा : 'क्यों बेटी... क्या हुआ? आँखों में आँसू क्यों? क्या गोपालकुमार की याद आ गई?'
सुनंदा रो पड़ी। रोते-रोते बोली : 'आज वे यहाँ होते तो?' धन सेठ ने अपनी बेटी के सिर पर हाथ फेरते हुए कहा : 'बेटी...गोपालकुमार यहाँ होते तो? तब तो पूरे नगर को फूलों से सजा देता मैं! उल्लास और उमंग के रंग उछलते होते! पर, अब उस बात को याद करके जी को छोटा मत कर! प्रियजनों का संयोग-वियोग तो संसार में चलता ही रहता है! तु तो अब इस अभय का खयाल कर... इसको लाड़-प्यार के साथ बड़ा कर | इसको संस्कारों से सजा। इसके सहारे ही जीना है... और तो किसी बात की कमी नहीं है इस घर में! सब कुछ है... और फिर यह सब तेरा ही तो है!'
धन सेठ ने सुनंदा को आश्वस्त किया।
सुनंदा ने बड़ी सावधानी और जतन से अभयकुमार का लालन-पालन किया। धीरे-धीरे अभयकुमार बड़ा होने लगा! चलने लगा... दौड़ने लगा... मस्ती करने लगा... शरारतें करने लगा!
धन सेठ की हवेली आनंद से छलकने लगी।
अभय पाँच साल का हुआ। उसे पाठशाला में पढ़ने के लिए भेजा गया । उस दिन पाठशाला के शिक्षक को धन सेठ ने कीमती वस्त्र भेंट किये | शाला के सभी विद्यार्थियों को मिठाई बाँटी । गरीब बच्चों को वस्त्र वगैरह दिये गये।
अभय रोजाना शाला में जाने लगा। पढ़ाई में कोई उसकी बराबरी का था ही नहीं!
For Private And Personal Use Only