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अभयकुमार
श्रेणिक ने कुछ ही दिनों में इस परिस्थिति का बारीकी से निरीक्षण किया। उसने सोचा : ___ 'यह वक्त... मेरे लिए राजा बनकर केवल सिंहासन पर बैठे रहने का नहीं है... जो हालात है... उनको नजर अंदाज नहीं किया जा सकता! ऐसे मंत्री लोग और सेनापति तो राज्य को कौड़ी के मोल बेच डालेंगे! राजनीति में ज्ञानी पुरुषों ने कहा है कि मंत्री विनीत... धर्मनिष्ठ और विशुद्ध बुद्धिवाला होना चाहिए! कुलीन, शीलवान्, सत्यवादी... रूपवान और सदैव प्रसन्न मुखमुद्रावाला मंत्री ही राज्य की उन्नति कर सकता है!
राज्य का कोषाध्यक्ष प्रामाणिक, धैर्यवान्, रत्न परीक्षा में निष्णात एवं सदाचारी होना जरूरी है।
प्रधानमंत्री तो ऐसा चाहिए... जो औरों की चेष्टाएँ और आकृति देखकर उसके मन के भावों को भांप ले! वह तत्त्वज्ञानी होना चाहिए, प्रियभाषी होना चाहिए... एक बार में ही पूरी बात को समझ-परख ले वैसी पैनी नजरवाला प्रधानमंत्री ही राज्य को समृद्ध और अपराजित रख सकता है!
परंतु... यदि मैं अभी इन पुराने मंत्रियों को निकाल बाहर कर दूंगा तो ये लोग राज्य में असंतोष-अशांति फैलाएंगे; उपद्रव करेंगे...| प्रजा उनके साथ हो जाए तो विद्रोह हो जाने की भी संभावना है! मुझे उन्हें... चालाकी से... तरकीब लड़ाकर... निकालना होगा। उन्हें निकालने के बाद अच्छे-अनुभवी मंत्रियों को नियुक्त करूँगा। वहाँ तक तो इन उल्लू के पठ्ठों के बीच रहकर ही मुझे यथा शक्य सफाई करनी होगी!' ___यों करते हुए सात-आठ साल बीत गये! समय गुजरते हुए कहाँ देर लगती है? श्रेणिक राजा को ४९९ मंत्री तो मिल गये, परंतु जैसा चाहिए था वैसा महामंत्री नहीं मिल सका।
बेनातट नगर में धन सेठ की पुत्री और श्रेणिक की पत्नी सुनंदा ने योग्य समय पर पुत्र को जन्म दिया । धन सेठ ने भव्य उत्सव मनाया। जिनमंदिरों में महोत्सव मनाये | गरीबों को दिल खोलकर दान दिये गये। गीत-गान और नृत्य के कार्यक्रमों से धन सेठ की हवेली गूंज उठी।
सुनंदा ने अपने लाडले बेटे का नाम 'अभयकुमार' रखा । धन सेठ ने नाम रखने के दिन अभय को सुवर्ण के अलंकारों से सजाया... कीमती वस्त्रों से सजाया। अपने रिश्तेदार संबंधीजनों के लिए सुंदर भोजन समारोह का आयोजन किया।
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