________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www.kobatirth.org
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
अंधी राजकुमारी देखे लगी
३४
का प्रेम से स्वागत किया और पूछा : 'कहिए, सेठ, आज क्या बात है ? सबेरेसबेरे आ गये हो ... कुछ जरूरी काम आ पड़ा है क्या ?'
'महाराजा, काम तो अत्यंत जरूरी है... आप राजकुमारी सुलोचना को यहाँ बुलवाइये। राजेश्वर, परमात्मा की असीम कृपा उस पर उतरनेवाली है! आज उसे दृष्टि मिलेगी!'
'क्या कहते हो, सेठ! सच बोल रहे हो कि मजाक कर रहे हो?'
'महाराजा, आप के साथ मजाक करने की मेरी हैसियत है क्या ? और वह भी राजकुमारी को लेकर ! कभी नहीं! आप ऐसा करें ... सोने के प्याले में पानी मंगवाइये।'
राजकुमारी आ गई। सोने के प्याले में पानी भी आ गया। धन सेठ ने श्रेणिक का दिया हुआ रत्न जेब में से निकाल कर ... पानी में डाला... और उस पानी को लेकर राजकुमारी की आँखों पर छींटे दिये ।
जैसे कि चमत्कार हुआ !
राजकुमारी कुछ पल अपनी आँखें मलती रही... मसलती रही और यकायक खुशी से पागल हो उठी...
‘पिताजी... मैं देख रही हूँ... मेरी आँखें देख रही हैं... मैं आपको देख रही हूँ... मैं धन सेठ को देख रही हूँ... । खिड़की के बाहर वे हरे-भरे पेड़ पौधे .... ऊपर नीला आकाश... बादलों का कारवाँ... सब कुछ मैं देख रही हूँ... सच बापू! मुझे सब कुछ दिखाई देता है!' राजकुमारी उठकर नाचने लगी ।
राजा की आँखें हर्षाश्रु से छलछला उठी । राजा ने खड़े होकर धन सेठ को अपने बाहुओं में भर लिया ।
भर्रायी आवाज में बोले... ' सेठ, तुमने मेरे ऊपर... मेरे परिवार पर.... अरे मेरे राज्य पर महान् उपकार किया है... इस उपकार का बदला मैं कभी नहीं चुका सकूँगा... फिर भी मैं तुम्हें मेरा आधा राज्य भेंट करता हूँ ।'
'नहीं... नहीं... महाराजा, मुझे राज्य क्या करना है? आपकी मेरे ऊपर कृपा है... वह बस है! आपकी मेहरबानी ही मेरे लिए सब कुछ है... फिर भी एक अर्ज है आपसे!'
'बोलो, क्या कहना चाहते हो ?'
'मेरी बेटी सुनंदा की एक इच्छा है... वह आप पूरी करें... वैसी मेरी प्रार्थना है ! '
For Private And Personal Use Only