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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir उत्तरकोशल तत्कालीन भारत का महत्वपूर्ण गणराज्य था | गंगा के रम्यसुरम्य किनारे पर बसी श्रावस्ती नगरी उत्तरकोशल राज्य की शान थी। गंगा के पवित्र नीर श्रावस्ती की सुजला-सुफला धरती को हरा-भरा उपवन सा बनाए रखते थे। आज सारा श्रावस्ती नगर आनन्द से आलोड़ित बन रहा है। चारों तरफ एक ही चर्चा है, एक ही बात है : भगवान महावीर अपने शिष्यगण सहित आज श्रावस्ती के उपनगरीय उद्यान में पधारे हैं। श्रावस्ती के राजमार्गो पर बड़ी चहल-पहल नजर आ रही है। लोग बड़ी उत्कंठा से सर्वज्ञ तीर्थंकर के दर्शनार्थ जा रहे हैं। वसन्त की बहकी-बहकी हवा उद्यान के वृक्षों को झुला रही है। चारोंतरफ हरियाली ही हरियाली! कदम्ब-डाली पर कोयले कूक रही हैं। आम की डालियों पर मोर नृत्य करते-करते अपने केकारव से वातावरण को भरा-भरा बना रहे हैं। रंग-बिरंगे फूलों की खूशबू हर एक के तन-बदन को महकामहका बनाती हुई फैली जा रही है। ऐसे में भगवान महावीर पधारे | मानों धर्म की अलबेली घड़ियाँ आ गई। श्रावस्ती के नर-नारी धर्म के महकते मौसम का स्वागत कर रहे हैं। देवों ने श्रावस्ती नगर की सीमा में सुन्दर समवसरण की रचना की है। श्रावस्ती की जनता ऐसी अलौकिक एवं नयनरम्य रचना देखकर दंग रह गई। हर एक जीव के लिए, प्राणी मात्र के लिए, समवसरण के द्वार खुले थे। सभी खुशी के मारे झूम उठे। देव और दानव! पशु और मानव! स्त्री एवं पुरुष! श्रमण एवं श्रमणी! समवसरण के भीतर बैठे करुणामूर्ति परमात्मा महावीर की अमृतमयी देशना सुनने लगे। श्रावस्ती के अधिकांश नर-नारी आज समवसरण में आ पहुंचे हैं | अशोक वृक्ष की शीतल छाया! सुरसर्जित दिव्य ध्वनि के मीठे-मीठे मादक सुरों के बीच परमात्मा की धीर, गम्भीर और मधुरतम देशना! अहा! कौन प्यासा रहेगा इस वक्त? सब लीन बने हुए हैं देशना के प्रवाह में। हर एक जीव अपनी सुधबुध खो चूका है। हर एक की आँखें परमात्मा के मुखारविन्द पर लगी है। परमात्मा की आँखों से अजस्त्र बहती करुणाधारा में जीवात्माएँ अपूर्व शान्ति, तृप्ति और प्रसन्नता का अनुभव कर रही हैं। कोई चिंता नहीं, कोई विक्षेप नहीं! लगता है 'परमात्मा के सुधापूर्ण वचनों की वर्षा अनवरत होती ही रहे! हम अपने आपको इस सुधावर्षा में भिगोते रहे ।' एक प्रहर बीता। पूरे तीन घण्टे बीत चुके । परमात्मा ने देशना पूर्ण की। तभी एक व्यक्ति ने खड़े होकर विनयपूर्वक वन्दना करके प्रभु से प्रश्न किया "हे विश्ववत्सल! कल रात मैंने जो देखा, एकान्त के क्षणों For Private And Personal Use Only
SR No.009638
Book TitleRag Virag
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhadraguptasuri
PublisherMahavir Jain Aradhana Kendra Koba
Publication Year2010
Total Pages82
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Spiritual
File Size1 MB
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