________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www.kobatirth.org
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
सही दिशा की ओर
६० कामगजेन्द्र प्रियंगु के सामने यह बोलते-बोलते गद्गद हो उठा। प्रियंगु की भी आँखें आँसुओं से चमक रही थी। उसका स्वर भर्रा गया...। 'फिर क्या हुआ स्वामिन्?'
फिर उस राजा ने पूछा : 'भगवंत यह कामगजेन्द्र मनुष्य है तो यह सात हाथ ही ऊँचा क्यों है? हम तो पाँच सौ मनुष्य की ऊँचाई वाले हैं।' ___ 'महानुभाव, यह महाविदेह क्षेत्र का है और कामगजेन्द्र तो भरत क्षेत्र का है। यहाँ हमेशा सुखमय काल होता है, वहाँ अब दुःखमय समय शुरू होगा। यहाँ शाश्वत् समय है, जबकि वहाँ समय की अवधि है | यहाँ दीर्घायुष्य है, वहाँ अल्पायुष्य है। यहाँ अधिक पुण्यशील प्राणी हैं, वहाँ अल्प पुण्यशाली लोग हैं। यहाँ सत्वशील आत्माएँ हैं, वहाँ सत्वहीन पुरुष हैं। यहाँ ज्यादा सज्जन और कम दुर्जन हैं, वहाँ कम सज्जन और ज्यादा दुर्जन हैं। वहाँ के लोग जड़मति
और वक्र स्वभाव वाले हैं। यहाँ शाश्वत् मोक्षमार्ग है, वहाँ अशाश्वत् मुक्तिमार्ग है। यहाँ शुभ परिणामयुक्त और मनोहर पदार्थ हैं, वहाँ शुभ परिणाम वाले पदार्थो का ह्रास होता जा रहा है।' ___ 'देवी, जब मैंने यह सब सुना तो मुझे लगा कि अपना क्षेत्र कितने गुणों से रहित है। वह महाविदेह क्षेत्र धन्य है जहाँ सर्वज्ञ सर्वदर्शी, जगतबंधु देवेन्द्रपूजित, मुनिपूजित, सर्वजीवप्रतिबोधक, सर्वोत्तम, सर्वांग सुन्दर, सभी संशयों को दूर करने वाले जिनेश्वर भगवन्त विचरते हैं। मैंने मन ही मन परमात्मा की भावपूर्ण स्तुति की। स्तवना करते-करते मैं प्रभु के चरणों मे झुका | मेरी आँखें मूंद गयी। जब मैंने सिर उठाया आँखें खोली तो मैं उन दोनों विद्याधर कुमारिकाओं के साथ विमान की सीढ़ियाँ उतर रहा था।' ___ कामगजेन्द्र प्रियंगुमति को प्रेमपूर्ण नजरों से देख रहा था, इतने में परिचारिका ने आकर निवेदन किया : 'दुग्धपान का समय हो चुका है।
For Private And Personal Use Only