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बिन्दुमती कामगजेन्द्र के गीत हर एक की जबान पर है। उसके रूप और गुणों का पार ही नहीं।' _ मैंने जाकर ये सारी बातें बिन्दुमति को कही। हम तीनों एक लतामंडप में बैठे थे। बिन्दुमति मुझे बार-बार पूछने लगी। सच क्या कामगजेन्द्र इतना सुन्दर है? क्या वह इतना गुणवान और यशस्वी है? मैंने कहा : हाँ, होगा ही। चूँकि किन्नरयुगल को झूठी बातें करने से फायदा भी क्या? उन्होंने सच ही कहा होगा।
मेरी बात सुनकर बिन्दुमति गहरे विचार में डूब गई। फिर तो खड़ी होकर बगीचे में अकेली-अकेली घूमने लगी। उसके चेहरे पर विषाद की बदली घिर आयी। आँखों में से आँसू गिरने लगे। एक अजीब सी बेचैनी में छटपटाने लगी।
हमसे हमारी सहेली की मायूसी सही न गयी। हमने उसको प्यार से बुलाया...उसके हाथों में वीणा दी... चूंकि वो वीणा बजाने की बेहद शौकीन है। पर उसने तो वीणा को पटक दी...वह ठंढ़ी आहें भरने लगी। फिर तो वह फफक-फफक कर रो पड़ी। हमारे सारे प्रयत्नों के बावजूद उसकी आँखें बरसती ही चली। उसने हमसे भी मुँह मोड़ लिया। ___ हम उसकी मनः स्थिति को समझ चुकी थी। जिन्दगी में पहली बार वह किसी पुरुष के लिए बेचैन थी। कामगजेन्द्र की कल्पना ने उसके मन को पागल सा बना दिया है। वह स्वयं तो कामगजेन्द्र का नाम नहीं लेती है पर जब भी हमारे होठों पर से कामगजेन्द्र नाम सरकता है तो उसका चेहरा लाल टेसू सा निखर आता है। वह शरमा जाती है। उसने हमसे कहा : सखि, मुझे कामगजेन्द्र का नाम सुनाती रहो, उससे मुझे बहुत शीतलता मिलती है। काश! मुझे वे मिल पाते।
हमने उसके मन की खुशी के लिए एक झूठा-झूठा मंत्र भी तैयार कर डाला :
ॐ सरसो समुह दक्खों दयालु दाक्खिणो। अवेणउ तुज्झ बाहिह कामगइ दोति हूं स्वाहा!!
पर औपचारिक सांत्वना से सने झूठे और बेजान शब्दों का आखिर असर क्या होगा? कुछ भी नहीं! पानी के बिना तड़पती मछली जैसी स्थिति बिन्दु की हो गयी। वह न तो अपने गम को सह सकती थी और नहीं वह उसे कह
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