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पहेलियाँ
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पक्षिणी का सूचक है। तीसरा अक्षर अलग करने पर जो शब्द बनेगा उसे सभी चाहते हैं।
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सुरसुंदरी ने तुरंत उत्तर दियाः
वह शब्द है 'सुखड़ी' ! प्रथम अक्षर निकालने से 'खड़ी' शब्द बनेगा जो कि सफेद पृथ्वीकाय है। दूसरा अक्षर निकालने पर 'सूड़ी' शब्द बनेगा जो कि एक पक्षिणी (मैना) है । तीसरा अक्षर छोड़ दें तो होगा 'सुख' जिसे सभी चाहते हैं । '
सभा आनंद से झूम उठी ।
अमरकुमार ने तीसरी समस्या रखी।
'चार अक्षर का एक ऐसा शब्द है जिसको जपने से पाप नष्ट हो जाते हैं और वह जिनशासन का सार है । उन चार अक्षरों में से यदि पहले अक्षर को निकाल दें तो जो शब्द बनेगा वह पेट के शल्य को सूचित करता है । दूसरा अक्षर छोड़ देने से जो शब्द बनता है वह बोलने जैसा नहीं है । तीसरा अक्षर निकालकर यदि पढ़े तो उस से युक्त होकर रहना किसी के लिए अच्छा नहीं है। चौथा अक्षर छोड़ देने से जो शब्द बनता है उसके जैसी आचार्य भगवंत की वाणी होगी। कहो, वह क्या है ?'
सुरसुंदरी ने अविलंब जवाब देते हुए कहा :
'वह चार अक्षर का शब्द है, नवकार !
न- अक्षर शब्द बनेगा 'वकार' यानी विकार यह पेट में उठने वाला दर्द होता है। वह शल्य है । व को निकालने से शब्द बनेगा नकार - यानि इन्कार, जो किसी को भी अच्छा काम करते हुए नहीं कहना चाहिए। तीसरा अक्षर निकालने से बने हुए शब्द नवर यानी निठल्ले बैठे रहना, किसी के भी लिए अच्छा नहीं है। 'र' के बगैर शब्द बनेगा 'नवका' यानि नौका । आचार्यदेव की वाणी संसार-सागर में डुबते हुए जीवात्माओं को तिराने के लिए नौका- जहाज समान होती है। यह नवकार जिनशासन का सार तो है ही । '
तीनों समस्यायों के बिल्कुल सही जवाब सुरसुंदरी ने दिये । राजा-रानी और सभी सभाजनों ने सुरंसुदरी को लाख लाख धन्यवाद दिये ।
अब सुरसुंदरी के पूछने की बारी थी ।
'तीन अक्षर का एक शब्द है । पहला अक्षर छोड देने से जो शब्द बनता है - उसे दिल में से निकालकर कर देह को पवित्र बनाना चाहिए। दूसरा अक्षर
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