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शिवकुमार व्यसन आदि बुरी लतें छोड़कर जीवन को सुंदर बनाने का प्रयत्न करना । तेरे पिताजी तो कितना धर्ममय जीवन गुजारते थे?'
शिवकुमार ने पितातुल्य राजा दमितारि की प्रेरणा को स्वीकार किया। सुवर्णपुरुष को अपने घर पर ले गया। कुछ ही दिनो में तो वह बड़ा अमीर हो गया।
एक दिन सद्गुरु का सत्संग प्राप्त हुआ । गुरुदेव ने उसको मानव-जीवन को सफल बनाने की धर्मकला बतायी। शिवकुमार ने बारह व्रत अंगीकार किये | सोने का मंदिर बनवाया और रत्न की प्रतिमा निर्मित करके प्रतिष्ठापित की।
एक दिन इस संसार से विरक्त होकर उसने साधुधर्म अंगीकार किया, संयम धर्म का समुचित पालन करके कर्मों को नष्ट किया और अंत में उसकी आत्मा सिद्ध-बुद्ध-मुक्त हो गई।
'सुरसुंदरी, यह है शिवकुमार की पुरानी कहानी | श्री नमस्कार महामंत्र के ऐसे दिव्य प्रभावों के अनुभव तो आज भी मिलते हैं।'
सुरसुंदरी तो कहानी सुनने में पूरी तरह लयलीन हो गयी थी। जब साध्वीजी ने कहा : 'आज भी ऐसे दिव्य प्रभाव देखने को मिलते हैं - यह सुनकर सुरसुंदरी ने पूछा : 'क्या आपने अपने जीवन में कोई ऐसा प्रभाव देखा है? अनुभव किया है? मुझे लगता है कि आपको ज़रुर कोई दिव्य अनुभव हुआ ही होगा। यदि मुझसे कहने में... ___ 'कोई एतराज नहीं है... सुंदरी तुझे सुनाने में ।' सुन, एक अद्भुत अनुभव की बात तुझे बताती हूँ.
दो साल पहले हम मगध प्रांत में विचरण कर रहे थे। सवेरे का समय था। हम सभी आर्याएँ साथ-साथ ही पदयात्रा कर रहीं थीं। रास्ता पहाड़ी था, विकट भी था। फिर भी एक के पीछे एक... हम चलते हुए रास्ता काट रहीं थीं। इतने में अचानक ही शेर की दहाड़ सुनाई दी। हम सभी आर्याएँ खड़ी रह गयीं। हमारे सामने की ही पहाड़ी पर हमने एक खूखार शेर को देखा। मैंने सभी साध्वियों से कहा : 'बैठ जाओ नीचे... आँखें मूंदकर श्री नमस्कार महामंत्र का स्मरण करो।'
मैं स्वयं भी बैठ गयी। श्री नमस्कार महामंत्र के ध्यान में लीनता आने लगी। जब आँखें खोली तो दूर दूर चले जाते हुए शेर को मैंने देखा । मैंने
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