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आंसुओं में डूबा हुआ परिवार
३१९ दुःखद बन गया है। शायद तू अति आग्रह करेगी... इजाज़त नहीं देगी... तेरा मन नहीं मानेगा... तो हम संसार में रूक जाएंगे पर हमारा दिल...' सुरसुंदरी बोलते-बोलते रो पड़ी... गुणमंजरी सुरसुंदरी से बेल की भाँति लिपट गयी।
'नहीं... नहीं... तुम रोओ मत! तुम्हें दुःखी नहीं करूँगी...। तुम्हारी राह में विघ्न नहीं बनूँगी...।' गुणमंजरी ने सुरसुंदरी के आँसू पोंछे।
'मंजरी!' अमरकुमार ने मौन तोड़ा । गुणमंजरी ने अमरकुमार को देखा... अमरकुमार ने कहा : 'तू ऐसा तो नहीं मानेगी न कि मैंने तेरे साथ विश्वासघात किया है?' 'नहीं... नहीं... वैसा तो विचार भी मेरे दिमाग में नहीं आएगा नाथ! पर आप बिना मेरा जीवन, जीवन नहीं रहेगा। मैं जिऊँगी, पर जिंदा लाश की तरह! साँसों का जनाजा उम्र के कंधे पर ढोती हुई जीती रहूँगी। यह दिलदिल नहीं रहेगा... साँसों के आने-जाने का यंत्र बन जाएगा... तुम्हारी यादें... मेरे दिल को कितना तड़पाएगी? कितनी चोट लगेगी... हृदय को? वह चोट मैं कैसे सह पाऊँगी...? तुम्हारे विरह की व्यथा... वेदना... मैं नहीं सह पाऊँगी...। तुम्हारे पीछे मैं रो-रोकर पागल हो जाऊँगी...। और मैं करूँगी भी क्या? किसके लिए जिऊँगी? कौन-सा बहाना रहेगा मेरे जीने के लिए? मेरा तो सर्वस्व ही लुट जाएगा!' गुणमंजरी दोनो हाथों मे अपना चेहरा छुपाकर फफक पड़ी!
'मंजरी... अनुराग... उत्कट अनुराग ऐसी ही स्थिति पैदा करता है! तुझे यह अनुराग कम करना होगा। संबंधों की अनित्यता को बार-बार सोचकरसमझकर उस अनुराग के ज़हर को उतारना होगा। संबंधों की चंचलता का चिंतन ही शांति दे पाएगा। शांति प्राप्त हो सकेगी इसी से! और एक दिन तेरा मन भी संबंधों से मुक्त हो जाएगा।' ___ जब ज्ञानी गुरूदेव ने हमारे पूर्वभव का वर्णन किया... हमने जाति स्मरण ज्ञान से वह देखा... जाना... तब कर्मों की कुटिलता को समझा । इस संसार में जीवात्मा कर्मों के परवश पापकर्मों का आचरण तो कर लेती है, पर उसके भयंकर परिणाम कैसे आते हैं? बारह घड़ियों के किये हुए पाप बारह बरस की सज़ा दे गये! जब कि मैंने तो इस जन्म में ही कितना भयंकर पाप किया है? मुझे उन पापकर्मों का उग्र तपश्चर्या करके नाश करना है। अब इस संसार के सुखों के प्रति मेरा मन पूरी तरह विरक्त हो गया है।
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