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अपूर्व महामंत्र प्रथम परिचय की बात हर्ष भरे गद्गद् हृदय से माँ को बतायी। रतिसुंदरी प्रसन्न हो उठी।
'वत्से, ऐसा समागम मनुष्य के पापों को नष्ट करना है। त्यागी और ज्ञानी आत्माओं के वचन मनुष्य के संतप्त हृदय को परम शांति प्रदान करते हैं। उनसे श्रद्धा से और विनयपूर्वक प्राप्त किया हुआ ज्ञान जीवन की कठिनाइयों में मनुष्य को मेरूवत् निश्चल रखता है।' ___ 'और माँ, तुझे एक दूसरा समाचार दूँ। मैं कल अमर की हवेली में गई थी और देवी धनवती से मैंने साध्वीजी के बारे में पूछा तो उन्होंने मेरी धर्मबोध पाने की इच्छा जानकर प्रसन्नता व्यक्त की और... अमर को भी किन्हीं साधु-पुरुष के पास धर्मबोध के लिए जाने की प्रेरणा दी।'
'बहुत अच्छी बात है यह तो! क्या अमर ने मान ली बात!' 'हां, माँ! अमर उसकी माँ की बात कभी नही टालता। पिता की आज्ञा का भी पालन करता है।'
'लड़का प्रज्ञावान है... कलाओं का ज्ञाता है... साथ ही गुणी भी है... वह यदि धर्मबोध प्राप्त कर लेगा तो उसके गुण चंद्र-सूर्य की भाँति दमक उठेंगे।' ___ अमरकुमार की प्रशंसा करते हुए और सुनते हुए सुरसुंदरी पुलकित हो उठी। रतिसुंदरी जानती थी अमरकुमार और सुरसुंदरी के मैत्री-संबंध को। उसे तनिक भी आश्चर्य नहीं हुआ सुरसुंदरी को रोमांचित होते देखकर | बल्कि वह मुस्कारा दी।
'बेटी, जब तेरे पिताजी यह जानेंगे कि उनकी अपनी लाड़ली ने साध्वीजी के पास शिक्षा के लिए जाना तय कर लिया है, तब उन्हें कितनी खुशी होगी?' ___'माँ, मैं साध्वीजी से सबसे पहले तो श्री नमस्कार महामंत्र का अर्थ, भावार्थ और रहस्य समझेंगी। अपना तो यह महामंत्र है न?'
'हाँ बेटी... नमस्कार महामंत्र को समझना। पर साध्वीजी से प्रार्थना करना। हठ मत करना। वे जो धर्मबोध दें, उसे ग्रहण करना विनयपूर्वक!' 'अच्छा माँ!' इधर उधर की बातों में माँ-बेटी खो गयी।
दूसरे दिन नियत समय पर सुरसुंदरी श्वेत वस्त्रों को धारण करके उपाश्रय
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