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सुर और स्वर का सुभग मिलन
२६० उसके दिल में विचार कौंधा : 'मैं शासनदेवी से ही पूछ लूँ तो? हाँ...हाँ, मेरी वह दिव्यमाता ज़रूर मुझे कुछ न कुछ संकेत कर देगी...! भावी का भेद अवश्य बता देगी...!'
विमलयश का दिल हल्का-सा हो गया। प्रफुल्लित होकर उसने कक्ष में आकर वस्त्र बदले। शुद्ध-श्वेत वस्त्र पहनकर वह ध्यान में बैठ गया पद्मासन लगाकर | रात्रि का दूसरा प्रहर बीतने को था । विमलयश ध्यान में गहरे उतर गया था...।
एक दिव्य प्रकाश का वर्तुल उभरा... अद्भुत खुश्बू फैलने लगी कक्ष में... और शासनदेवी स्वयं प्रत्यक्ष हुई।
'बोल, सुंदरी! क्यों मुझे याद किया?' _ 'माँ, मेरी वात्सल्यमयी माँ! मुझे गुणमंजरी के साथ शादी रचानी होगी... पर बाद में क्या होगा? क्या अमरकुमार गुणमंजरी की शादी होगी? उनका जीवन सुखी होगा? बस, यह जानने के लिए ही माँ, आपको कष्ट दिया है।'
'चिंता मत कर... सुंदरी, गुणमंजरी और अमर की शादी होगी। उसका सहजीवन सुखमय एवं संतोषजनक होगा। गुणमंजरी माँ बनेगी। उनका पुत्र इस संसार में अमरकुमार के यश को फैलानेवाला होगा!'
देवी इतना कहकर अदृश्य हो गई। विमलयश का रोम-रोम हर्षित हो उठा। दिव्य खुश्बू को अपने सीने में भरकर वह आश्वस्त हो गया । और वहीं पर भूमिशय करके निद्रादेवी की गोद में लेट गया... अमरकुमार के सपनों में खो गया।
राजकुमारी गुणमंजरी की शादी के समाचार बेनातट राज्य के गाँव-गाँव और हर नगर में प्रसारित किये गये। मित्रराज्यों में भी समाचार भिजवाये गये। गुणमंजरी एवं विमलयश के रूप-लावण्यकी चारों ओर प्रशंसा होने लगी। उनके सौभाग्य के गीत रचे जाने लगे! चारों तरफ से राजा, राजकुमार, श्रेष्ठीजन, श्रेष्ठीकुमार... कवि... कलाकार वगैरह आने लगे।
शादी के मंडप को कदलीपत्रों, आम्रमंजरियों और रंगबिरंगे फूलों से सजाया गया था। जगह-जगह पर सुंदर परिचारिकाएँ सभी आमंत्रित अतिथियों का सस्मित स्वागत करती हुई खड़ी थी। पूरा मंडप अतिथियों एवं प्रजाजनों से भर गया था। महाराजा गुणपाल के आनंद की सीमा नहीं थी!
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