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चोर का पीछा मरकर उसे पाऊँगी, इसके अलावा मेरा कोई संकल्प नहीं है।' ___ दिल में घुमड़ती पीड़ा की आँधी राजकुमारी के चेहरे पर उभरने लगी थी। उसके स्वर में असहनीय उग्रता-व्यग्रता उफन रही थी। उसने कहा : _ 'ऐ तस्कर! क्या तू इतना भी नहीं समझ पाता है कि स्त्री के एक ही दिल होता है... और उसके हृदयमंदिर का आराध्यदेवता भी एक ही होता है? तू मेरे प्रेम की अपार ताकत को झुका नहीं सकता। मिटा नहीं सकता। मेरे संकल्प के बल को बदल नहीं सकता।' ___ 'ठीक है... ये सारी बातें फिजूल की हैं। तुझे समय देता हूँ... मेरी बात पर सोचने के लिए... आज का पूरा दिन और आधी रात । आधी रात गये मैं वापस आऊँगा...। यहाँ पर तुझे भोजन... पानी वगैरह मिल जाएगा...। मेरे आने के पश्चात् तुझे तेरा निर्णय बताना होगा।'
'मैंने अपना निर्णय बता दिया है... उसमें परिवर्तन की तनिक भी संभावना नहीं है... तू आशा के झूठे सपने देखना ही मत।'
'संयोग और परिस्थिति तो बड़े-बड़ों के इरादे बदल देती हैं, छोकरी..., रात को वापस लौटूंगा... तब तेरे विचार शायद बदल गये होंगे...।'
'संयोग बदलने से क्या होता है रे मूर्ख! क्या पता, पर मुझे लगता है तेरे भाग्य कहीं नहीं बदल जाएँ, ध्यान रखना।'
तस्कर मौन-मौन ताकता रहा गुणमंजरी को। केतकी के फूल से सुंदर प्रफुल्ल नयन... महुवे की कली-सा कपोल प्रदेश... अनार की कली से श्वेत शुभ्र दाँत... और जपाकुसुम से रक्तिम अधर... गुणमंजरी का सौंदर्य वैभव, वह स्तब्ध होकर देखता ही रहा...| उसका दिल बेताब हो उठा...। पर वह डर गया... कुमारी के कौमार्यतेज से वह हतप्रभ हुआ जा रहा था।
वह चला गया। गुफा में से बाहर निकला और भेष बदल कर सीधा बेनातट नगर में प्रविष्ट हो गया।
तस्कर के जाने के पश्चात् गुणमंजरी को अपनी पहाड़ सी गलती का ख्याल हो आया और वह तड़प उठी :
'अरे!... मैंने इस दुष्ट को कहाँ विमलयश का नाम बता दिया...? कितनी बड़ी भूल कर दी मैंने? मैंने विमलयश को आफत में डाल दिया। यह चोर भयंकर है, क्रूर है... कहीं विमलयश को...'
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