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राजा भी लुट गया महाराजा कुछ भी कहे बगैर अपने महल में चले गये। कपड़े वगैरह बदलकर सीधे रानी के पास पहुँचे। महारानी स्वयं चिंता में थी क्योंकि दो घटिका में वापस आने की बात कहकर महाराजा गये थे, पर अब तो पूरी रात बीत गयी थी। महारानी ने बेसब्री से पूछा : 'आप तो दो घड़ी में लौटनेवाले थे, इतनी देर क्यों लगा दी? सारी रात गुजर गयी... गुणमंजरी भी आ गयी है न?'
'तू क्या बोल रही है?' महाराजा का मन किसी दुर्घटना की आशंका से काँपने लगा था।
'अरे आपको क्या हो गया है? आप खुद तो रात को दूसरा प्रहर बीतने पर आये थे और मुझ से कहा था :
'चोर पकड़ा गया है... अब मैं गुणमंजरी को साथ लेकर महाकाल के मंदिर में जाऊँगा... मिठाई की थाली चढ़ाने की मनौती रचायी है। और आप गुणमंजरी को लेकर घोड़े पर सवार होकर रवाना हुए थे।' __राजा रो पड़े... 'ओह... मेरी बेटी को वह दुष्ट चोर उठा ले गया।' महारानी ने जब महाराजा से सारी बात जानी तो महारानी अपने आप को सम्हाल नहीं सकी। वह बेहोश होकर गिर गयी। पूरे राजमहल में क्या अब तक पूरे नगर में ये समाचार फैल गया था। सब लोग रो रहे हैं। सभी भय से काँप रहे हैं। राजमहल तो श्मशान हो गया है। कौन किसे आश्वासन दे? सभी परेशान है... गुमसुम हैं।'
'फिर महाराज ने क्या किया?'
'वह मुझे मालूम नहीं है... मैं तो इतने समाचार पाकर तुरंत दौड़ती हुई यहाँ पर आयी... कुमार।'
विमलयश खड़ा होकर व्यग्र मन से कमरे में टहलने लगा। मालती स्तब्ध होकर विमलयश को ताक रही थी। उसने हौले से कहा : 'कुमार!'
विमलयश ने मालती को प्रश्नभरी निगाह से देखा। 'कुमार, तुम जादू का पंखा बनाकर भारी से भारी बुखार मिटा सकते हो, तो क्या ऐसा कोई जादू नहीं है कि राजकुमारी जहाँ हो, वहाँ से वापस लायी जा सके?'
विमलयश ने मालती की आँखों में वेदनायुक्त विवशता पाई। हालाँकि उसका खुद का मन भी तीव्र पीड़ा से छलनी हुआ जा रहा था । गुणमंजरी के साथ उसका तीव्र सख्यभाव दिल में जीवंत था...। वह मालती के सवाल का
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