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चोर ने मचाया शोर
२२९ मौका देखकर खेलने लग गया, पुरोहित के साथ | पहले तो वह जान बूझकर हारता रहा... इधर पुरोहित को अपनी छोटी-छोटी जीत होती देखकर ताव चढ़ने लगा। वह बड़ी-बड़ी बाजी लगाने लगा। चोर ने बाजी जीतना जो चालू किया... बस, जीतता ही रहा! पुरोहित का सब कुछ जीत लिया! पुरोहित ने ताव में आकर अपनी रत्नमुद्रिका भी लगा दी दाव पर! वह भी चोर जीत गया!
इतने में पुरोहित को राजसभा में से बुलावा आया, तो वह राजसभा में गया। इधर चोर पहुँच गया पुरोहित के घर पर! पुरोहित की पत्नी से कहा : ___ 'मैं पुरोहित का खास दोस्त हूँ... मेरी बात सुन! पुरोहित को राजा ने कैद कर लिया है। क्यों किया है? मुझे पता नहीं है, पर मुझे पुरोहित ने भेजा है। अभी राजा के आदमी आएँगे और तुम्हारी घर की सारी संपत्ति छीन लेंगे। तू एक काम कर | जितना भी क़िमती सामान हो... जवाहरात रत्न... वगैरह हो वह मुझे दे दे... मैं अपने घर में सुरक्षित स्थान पर छिपा दूंगा। देख, तुझे भरोसा हो इसलिए पुरोहित ने उसकी यह रत्नमुद्रिका भी मुझे दी है...।' पुरोहित की पत्नी ने उसके हाथ में रत्नमुद्रिका देखी। उसे बात सही लगी।
पुरोहित की पत्नी ने घर की तमाम संपत्ति चोर को दे दी...| चोर वह लेकर वहाँ से नौ दो ग्यारह हो गया।
पुरोहित जब इधर घर पर गया तो उसकी पत्नी ने पूछा : 'आप जल्दी छूट गये...? क्या गुनाह हो गया था?' ___ "कैसा गुनाह... कैसी बात? क्या बक रही है तू?' 'पर वह आपके दोस्त आये थे रत्नमुद्रिका लेकर...?' कौन दोस्त?' और पुरोहित चौंका! जब उसने सारी बात जानी तो बेचारा सिर पटककर रह गया। उसने राजसभा में आकर महाराजा से सारी घटना बतायी... सारी राजसभा हँस-हँस कर लोट-पोट हो गई!' 'वाह बड़ा मज़ाकिया चोर लगता है यह तो... होशियार भी है! अच्छा, फिर क्या हुआ?' विमलयश की जिज्ञासा बढ़ रही थी।
'फिर चोर को पकड़ने का इरादा ज़ाहिर किया, धनसार सेठ और सल्लू नाई ने! उस चोर ने मालूम कर लिया कि धनसार सेठ और सल्लू नाई उसे पकड़ने के लिए निकले हैं! वह भेस बदल दोपहर में पहुँच गया हजामत करवाने के लिए सल्लू नाई के घर पर! सल्लू ने बढ़िया हजामत बनायी और हजामत के पैसे माँगे| चोर ने जेब टटोली... पैसे नहीं मिले तो उसने सल्लू से कहा : 'देख, आज मैं घर से निकला तो पैसे लाना ही भूल गया, तू ऐसा
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