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राजमहल में
२१२ 'अरी मालिन, यह तो बता, कि इस पंखे में ऐसी क्या विशेषता है जो तू इसका सवा लाख रूपया माँग रही है?'
मालती को लगा : यह कोई सचमुच खरीदनेवाला लगता है। उसने कहा : 'सेठ, यह पंखा जादू का है। दाहज्वर से पीड़ित व्यक्ति का दाहज्वर मिटा दे वैसा जादू है इसमें!'
क्या बात कर रही हैं? तो चल मेरे साथ मेरी हवेली पर! मेरा लाड़ला बेटा कई दिनों से दाहज्वर से तड़पता है। उसका दाहज्वर यदि मिट गया तो मैं तुझे सवा लाख रूपये नगद गिन दूंगा।' ____ मालती पंखा लेकर सेठ के साथ चल दी उसकी हवेली पर | सेठ ने पंखा लेकर अपने बीमार बेटे पर हवा डाली...| ज्यों-ज्यों पंखे की हवा फैलने लगी... सेठ का बेटा ज्वर से मुक्त होने लगा। उसकी आँखों में नींद आने लगी।
सेठ हर्ष से पुलकित हो उठा! 'मालिन, तेरा जादू का पंखा सच्चा! पंखा मेरा और ले यह सवा लाख रूपये तेरे!'
सेठ ने सवा लाख रूपये नकद गिन दिये। रूपये लेकर आनन-फानन में मालती अपने घर पर दौड़ी आयी। उसका आनंद उछल रहा था... विमलयश के कमरे में आकर सवा लाख रूपये विमलयश के सामने रख दिये और खुद भी बैठ गयी नीचे। ___ 'बिक गया पंखा सवा लाख में मेरे राजकुमार! क्या पंखा बनाया है तुमने? तुम तो बड़े अजीब कलाकार हो...। राजकुमार, क्या कहने तुम्हारे! सवा लाख का पंखा! बाप रे... और फिर बिक भी गया!'
मालती एक ही साँस में बोल गयी। हाँफ रही थी...। विमलयश चेहरे पर मुस्कान बिखेरे उसे देख रहा था।
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