________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www.kobatirth.org
आदमी का रूप एक सा !
‘पर आपने कुछ सोचा तो होगा न उसके लिए...?'
'सोचा तो है... पर...'
आपने
‘मेरे सामने आप इतना झिझक क्यों रहे है ?' खुलकर कहिए ना.... क्या सोचा है... ?'
आपको मुझपर भरोसा नहीं है... ?'
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
'शायद तुम्हें पसंद न आये!'
'आपको जो पसंद... वह मुझे मंजूर होगा ।'
'सचमुच?'
'तो क्या... 'नहीं-नहीं... भरोसा तो पूरा है ।'
'तो फिर कह दीजिए न अपने मन की बात ।'
'मैं सोचता हूँ... उसे रानी बनाने के लिए । '
'ओह! इसमें इतना संकोच क्या ? राजाओं के अंतःपुर में तो अनेक रानियाँ होती हैं...।'
१४२
‘पर अभी... मैंने उससे पूछा नहीं है।'
'वह क्यों मना करने लगेगी ? भला, राजा की रानी होना किसे पसंद नहीं?'
'अच्छा... तो फिर अभी मैं चलता हूँ ।'
राजा ने सुरसुंदरी के कमरे का दरवाज़ा बंद देखा
'आज जाने दे... मैं कल उसे पूछ लूँगा ।'
‘हाँ... आज तो वह अंदर से दरवाज़ा बंद कर के कमरे में सो गयी है । '
और वह चला गया ।
मदनसेना का मन कुढ़ने लगा : 'क्या मैं इतनी पागल हूँ... जो मेरे ही सिर पर सौतन को बिठा लूँ...? नहीं... कभी नहीं ... । महाराज उससे मिलें, इससे पहले मैं स्वयं उससे मिलूँगी। उसके मन की बात जान लूँगी । फिर आगे की सोचूँगी । '
For Private And Personal Use Only
संध्याकालीन भोजन का समय हो चुका था । परिचारिका सुरसुंदरी के लिए भोजन की थाली लेकर आयी... उसने दरवाज़ा खटखटाया। सुरसुंदरी जग गई... उसने दरवाज़ा खोला ।
'मैंने आपके आराम में खलल डाला... माफ करें... भोजन का समय हो चुका था... अतः...'