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चोर की चतुराई! महामंत्र की भलाई!
८४ व्यक्ति अदृश्य रूप से मेरे साथ मेरी थाली में से भोजन कर रहा है! मेरी थाली में जितना भी भोजन परोसा जाता है... उसमें से मैं तो बहुत थोड़ा ही खा पाता हूँ, बाकी तो सारा का सारा भोजन वह ही खा जाता है!'
राजा की बात सुनकर मंत्री विचार करने लगा : 'जरुर कोई अंजनसिद्ध व्यक्ति अदृश्य बनकर राजा की थाली में से भोजन कर लेता है।' राजा की कमजोरी का कारण उसकी समझ में आ गया। उसने राजा को आश्वस्त करते हुए कहा : ___ 'महाराजा, आप चिंता मत करें... अब मैं उस व्यक्ति से निपट लूँगा...। कल ही उस अदृश्य आदमी को मैं पकड़ लूँगा।'
मंत्री राजा को प्रणाम करके अपने घर पर गया। उसने बुद्धि लगाई और सोच-समझकर एक बढ़िया योजना बनाई। अपनी बनाई हुई योजना पर वह स्वयं आफरीन हो उठा।
दूसरे दिन भोजन के कुछ समय पहले मंत्री राजमहल में गया। जिस कमरे में बैठकर राजा भोजन करता था उस कमरे में मंत्री ने आक के सूखे पत्ते बिखेर कर बिछा दिये और सूखे फूल डलवा दिये। उस कमरे के चारों कोनों में चार बड़े-घड़े रखवा दिये। उन घड़ों में तीव्र गंधवाला धूप भरवा दिया, और घड़ों के मुँह ढंकवा दिये। कमरे के बाहर शस्त्रों से सज्ज सैनिक दस्ते तैनात कर दिये। __मंत्री खुद भी पास के कमरे में छुप कर बैठ गया। भोजनखंड में राजा रोजाना की भाँति भोजन करने के लिये बैठा। थाली में भोजन परोस दिया गया था। इतने में अदृश्यरूप में रूपा चोर वहाँ आ पहुँचा। उसकी नजर तो राजा की तरफ और भोजन की तरफ थी। जैसे ही उसने कमरे में पैर रखा...आक के सूखे पत्ते कड़क कर खड़खड़ाये | मंत्री चौकन्ना हो गया। वह भोजन की थाली के पास पहुँचा। इतने में तो मंत्री ने चार कोनों में रखे हुए घड़ों के मुँह खुलवा दिये...और पूरा कमरा धुएँ से भर गया | इतना धुआँ...कि जैसे अश्रुगैस छोड़ा हो किसी ने! ___पत्तों के खड़खड़ाने से ही मंत्री समझ गया था कि वह अदृश्य आदमी आ पहुँचा है! इसलिए तुरंत उसने धुआँ छोड़ दिया। राजा, मंत्री और चोर... तीनों की आँखें जलने लगी...| आँखों में से पानी गिरने लगा। रूपा हड़बड़ाहट में अपनी आँखें मसलने लगा...उसकी आँखों में लगाया हुआ अंजन धुलने
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