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चोर की चतुराई! महामंत्र की भलाई! लेता इतने में रूपा चार-पाँच कौर दबा जाता! जल्दी-जल्दी भोजन करके रूपा तो जिस रास्ते आया था उसी रास्ते महल से बाहर निकल गया।
इधर राजा पद्मोदय तो सोच में पड़ गया : 'अरे, यह क्या गजब है? आज मेरी थाली में से खाना जल्दी-जल्दी कैसे खतम हो गया? मैं तो अभी भूखा ही हूँ...| मैंने तो इतना खाया भी नहीं, अब और खाना मांगूंगा तो रसोईया समझेगा 'मैं कितना खाना खाता हूँ।' शरम के मारे राजा बेचारा भूखा ही उठ गया खाने पर से।
रूपा तो अपने घर पहुंचकर मजे से आराम करने लगा। उसे राजमहल के खाने का चस्का लग गया था। वह अपने मन में सोच रहा था : 'अब तो बस, मैं रोजाना राजमहल में जाकर राजा की थाली में से ही खाना खाऊँगा! मेरे पास अंजन तो है ही। मुझे कौन देखने वाला है? किसकी ताकत है जो मुझे पकड़ेगा?' ___ और रूपा प्रतिदिन राजा की थाली में से भोजन करने लगा। राजा बेचारा शरम के मारे हर रोज भूखा रहने लगा। किसी से कहे भी तो क्या कहे? राजा तो भूख से कमजोर पड़ने लगा।
एक दिन राजा के मंत्री मतिशेखर की नजर राजा के कमजोर हुए जा रहे शरीर पर पड़ी। मंत्री का मन चिंतित हो उठा : ___ 'राजा इतने कमजोर क्यों हुए जा रहे हैं? क्या राजा को कोई चिंता या बीमारी है? क्या वे पूरा भोजन नहीं कर रहे होंगे? भोजन के बिना शरीर तंदुरस्त कैसे रहेगा? जैसे बिना आँखों के मुँह अच्छा नहीं लगता, बगैर न्याय का राजा शोभा नहीं देता, बिना नमक का भोजन अच्छा नहीं लगता, बिना चाँद की रात नहीं सुहाती...और धर्म के बिना जीवन शोभा नहीं देता... वैसे ही खाने के बगैर शरीर शोभा नहीं देता!'
मंत्री ने एक दिन अवसर पाकर राजा से हाथ जोड़कर पूछा : 'महाराजा, क्या बात है...? आपका शरीर इतना कमजोर और दुबला क्यों हो रहा है? किस बात की चिंता-फिक्र है आपको? कम से कम आप मुझसे तो सब बात खोल कर बतायें! आखिर क्या परेशानी है?'
राजा ने मंत्री से कहा : 'मतिशेखर, तुम्हारे जैसा बुद्धिमान मंत्री मेरे पास है फिर मुझे चिंता किस बात की? पर पिछले पंद्रह-बीस दिन से मुझे ऐसा महसूस होता है कि कोई
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