________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www.kobatirth.org
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
बड़ों का कहा मानो
८० __ तीन-चार महीने बीत गये । बेल अब बड़ी होकर पेड़ को लिपटती हुई ऊपर चढ़ने लगी। एक दिन न जाने कहीं से एक शिकारी सरोवर के किनारे पर आया। उसने पेड़ देखा... वह जानता था की 'इस पेड़ पर कई हंस रहते हैं।' वह बेल को पकड़कर फर्राटे से ऊपर चढ़ गया। उसने अपनी कमर में छुपायी हुई जाल बाहर निकाली। उसने पेड़ के चारो तरफ जाल बिछा दी। उस समय पेड़ पर एक भी हंस हाजिर नहीं था। सभी दाना चुगने दूर-दूर गये हुए थे। ___शाम हुई...रात हुई। दूर गये हुए हंस वापस लौटने लगे। अंधेरे में किसी ने जाल को देखा नहीं। ज्यों ही वे पेड़ पर बैठने गये कि सभी जाल में बुरी तरह फँस गये!
बूढ़ा हंस सब से पीछे धीरे-धीरे उड़ता हुआ आ रहा था। जाल में फँसे हुए हंसो ने जोरों से चीखना-चिल्लाना चालू किया। नजदीक आये हुए बूढ़े हंस ने यह सब सुना | उसके मन में कुछ बुरा होने की आशंका जाग उठी । वह पेड़ से दूर ही रहा। उसने वहीं से पूछा : 'क्यों बेटे, क्या हुआ? क्यों चीख रहे हो?' 'दादा, हम फँस गये हैं जाल में! अंधेरे में इस जाल को देख ही नहीं पाये और फँस गये!'
बूढ़ा हंस समझ गया । 'अवश्य, उस बेल को पकड़ कर ही शिकारी पेड़ पर चढ़ा होगा। उसने ही जाल बिछायी होगी।' उसने उन अभिमानी हंसों से कहा : ___ 'अब तो तुम्हारी मौत नक्की है, पर चिंता किस बात की? तुम तो बहादुर हो...! मौत से डरते नहीं हो... आराम से पड़े रहो! सुबह में शिकारी आकर के तुम सब को ले जायेगा अपने साथ!'
'दादाजी...हमारे ऊपर दया करो... कुछ भी उपाय बतलाइये... हमें बचा लीजिये।'
'मैं कैसे बचाऊँ तुम्हें? मैंने तो उसी वक्त तुम्हें सावधान कर दिया था! पर तुम तो मेरा मजाक उड़ा रहे थे तब! अब तुम्हें मरना ही होगा।' ___ 'दादाजी, माफ कर दो हमारी गलती को! हमें अभी बड़ी पश्चात्ताप हो रहा है। यदि हमने आपका कहा मानकर उस बेल के अंकुर को उसी समय काट दिया होता तो आज हमारी यह दशा नहीं होती! माफ कर दो दादाजी...' सभी हंस रोने लगे...कलपने लगे।
हंसों के रोने का स्वर सुनकर बूढ़े हंस को दया आ गई। उसने कहा :
For Private And Personal Use Only