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विद्या विनयेन शोभते
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और कौई नहीं पर वह आम चुरानेवाला मातंग ही था । 'चोर-चोर मौसेरे भाई' - चोर को चोर ही श्रेष्ठ लगेगा न ?
राजा ने उस चंडाल से पूछा :
'तूने बगीचे में से आम चुराये हैं?"
‘हाँ, महाराजा।’
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'क्यों चुराये?'
'मेरी पत्नी की इच्छा पूरी करने के लिये !'
'पर तूने चोरी की कैसे ? इतने पहरे के बीच बगीचे में घुसना...'
'महाराजा, मैं बगीचे में घुसा ही नहीं... बाहर दीवार के पास खड़े रहकर मैंने आम तोड़े थे।'
'पर डालियाँ तो काफी ऊँची थी । तूने किस तरह आम उतार लिये?' 'महाराजा, क्षमा करना... मेरे पास 'अवनामिनी' नाम की विद्या है... उस विद्या के सहारे मैंने डालियों को झूका दी और आम तोड़ लिये। फिर ‘उन्नामिनी' नामक विद्या से उन डालियों को वापस कर दी ।' चंड़ाल ने सारी बात सच-सच बता दी ।
राजा तो ताज्जुब हो गया यह जानकर कि इस चंड़ाल के पास इतनी सुंदर दो विद्याएँ हैं। उसकी इच्छा हुई, उन विद्याओं को प्राप्त करने की ! राजा ने चंडाल से कहा :
'तू तेरी वे दो विद्याएँ मुझे सिखायेगा ?'
'जरुर... महाराजा... आप तो हमारे मालिक हो! आप को नहीं सिखाऊँगा तब फिर किसे सिखाऊँगा?'
'तो सिखला दे मुझे वे विद्याएँ ।'
राजा श्रेणिक सिंहासन पर बैठा था ।
मातंग चंड़ाल राजा के सामने जमीन पर खड़ा था । वह विद्या बोलता है, राजा से बुलवाता है, पर राजा को विद्या याद नहीं रहती है ! दस-पन्द्रह बार बुलवाने पर भी जब राजा को विद्या याद नहीं हुई तो राजा को बड़ा गुस्सा आया चंड़ाल पर। उसने कहा : तू जान-बूझकर मुझे ठीक से नहीं सिखा रहा है!’
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