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श्रेष्ठिकुमार शंख
६८ धनपाल वगैरह तीनों मित्र भी होश में आ गये थे। राजा ने उन तीनों को अपने समीप ही बिठाया। राजा ने अपने पूर्वजन्म की बात विस्तार से कही। 'ये धनपाल वगैरह तीनों मेरे पूर्वजन्म के मित्र हैं।' राजा की आँखें हर्ष के
आँसुओं से छलछला उठी। राजा खड़ा हुआ और तीनों मित्रों से गले मिला। __राजा की भाँति धनपाल वगैरह तीनों मित्रों को भी पूर्वजन्म की स्मृति हो आई थी। धनपाल ने खड़े होकर राजा को प्रणाम करके कहा : __'महाराजा, आपने दयाधर्म का पालन किया... किसी की हत्या नहीं की तो आप देवलोक में गये और राज्य का वैभव मिला आपको इस जन्म में! हमने हिंसा की...तो हम नरक में गये और इस जन्म में भी अनाथ से पैदा हुए। हम आज से दयाधर्म को स्वीकार करते हैं।'
राजा और तीनों सेवकों का पूर्वजन्म सुनकर सारी राजसभा आश्चर्य से चकित रह गई। दयाधर्म का अद्भुत प्रभाव सुनकर हजारों लोगों ने दयाधर्म को अंगीकार किया। ___ एक दिन विजयनगर में 'निर्वाणबोध' नाम के महामुनि पधारें। नगर के बाहरी उपवन में अनेक शिष्यों के साथ वे ठहरे | माली ने जाकर राजा को समाचार दिये। राजा अपने परिवार के साथ उपवन मे पहुँचा। हजारों नगरवासी लोग भी वहाँ पर आये | मुनिराज ने धर्म की देशना दी।
राजा और मंत्रीमंडल ने श्रावकजीवन के बारह व्रत स्वीकार किये। नगर में ढिंढोरा पीटवा दिया गया कि 'जो भी व्यक्ति जीवहिंसा करेगा... उसको कड़ी सजा दी जायेगी। उसका सर्वस्व ले लिया जायेगा और जेल में उसे जाना पड़ेगा।'
राजा जय ने इसके बाद तो अनेक भव्य जिनमन्दिरों का निर्माण किया। सुवर्ण की हजारों जिनप्रतिमाएँ बनवाई। लाखों की संख्या में संगमरमर की जिनप्रतिमाएँ बनवाई। करूणाभाव से गरीबों को, दीन-दुःखीजनों को दान दिया। इस तरह अनेक प्रकार के सत्कार्य करते हुए राजा जय ने एक हजार बरस तक राज्य किया।
एक दिन राजा जय राजसभा में सिंहासन पर बैठा हुआ था। राजसभा में नृत्यांगना का नृत्य चल रहा था। राजा जय आत्मचिंतन में डूबने लगा। वह सोचने लगा मन ही मन :
'यह राज्य भी छोड़ने के लिये है। जहर से भरी मिठाई की तरह यह राज्यवैभव है।'
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