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राजकुमार अभयसिंह
४१ इतने में तो आकाश बादलों से घिर गया। जोरों की हवा बहने लगी। बारिश चालू हो गयी। धीरे-धीरे बारिश जोर पकड़ने लगी...चारोतरफ अन्धेरा ही अन्धेरा छाने लगा। बिजली कड़कने-भड़कने लगी।
इधर राजा को ऐसा महसूस हुआ, जैसे कोई दो व्यक्ति आपस में बात कर रहे हों। राजा ने इर्द-गिर्द देखा, पर अन्धेरा होने से उसे कुछ नजर नहीं आया। आवाज स्पष्ट सुनाई दे रही थी।
आदमी की आवाज आ रही थी : 'देख... तुझे एक गुप्त बात बताता हूँ। यह जो राजा है उसका भविष्य मैं तुझे बता रहा हूँ। तू ध्यान से सुनना।'
औरत की आवाज उभरी : 'कहिये...आप, मैं ठीक-ठीक सुन रही हूँ, आप जल्दी से कहिये।'
आदमी ने कहा : 'निर्दोष बच्चों की हत्याएँ कर-करके इस राजा के पाप का घड़ा अब भर चुका है। अब यह कुछ ही दिनों का मेहमान है... बुरी मौत मरेगा यह दुष्ट राजा।' 'तब फिर इस नगर का राजा कौन बनेगा?'
पुरुष ने कहा : 'इस राजा को तो कोई बेटा नहीं है। केवल एक राजकुमारी है। इसलिए जो युवा इस राजा की आज्ञा को नहीं मानेगा, पागल बने हुए हाथी को वश में कर लेगा...और राजा की कुँवरी के साथ ब्याह रचायेगा, वह इस नगर का राजा होगा।'
बस, इतनी बात हुई और वार्तालाप बंद हो गया। यह बातचीत करनेवाले सचमुच तो दो भूत थे। पति-पत्नी थे। वे अदृश्य रहकर अपना कुतुहल पूरा करने के लिए बातें कर रहे थे। यकायक वे अदृश्य हो गये। वे दूसरे स्थान पर चले गये।
राजा तो सारी बात सुनकर बावरा सा हो उठा था। उसका हृदय धक-धक करने लगा था। उसने अपने सेनापति को बुलाकर आनन-फानन आज्ञा की : 'आज से नगर में चौकसीपूर्वक यह ध्यान रखो कि कौन आदमी राज्य के नियमों का ठीक से पालन नहीं कर रहा है। यदि कोई युवा मेरी आज्ञा का उल्लंघन करे तो तुरंत ही उसे पकड़कर मेरे पास पेश करना।'
अब राजा का मन न तो खाने-पीने में लग रहा है...न तो उसे राजकार्य में रुचि है। सारे दिन वह उखड़ा-उखड़ा सा रहता है। मौत का डर उसके
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