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मायावी रानी और कुमार मेघनाद
३० उसने दर्शन तो किये ही नहीं थे... | कौर उसके हाथ में ही रह गया। उसने धन्या से कहा :
'अरे...आज मैं भगवान के दर्शन करने के लिये तो गया ही नहीं... मैं अभी दर्शन करके वापस आता हूँ...। उसने खिचड़ी का कौर थाली में रखा । पर हाथ धोने की उसकी इच्छा नहीं हुई, क्योंकि इतना तेल फिजूल चला जाता ना? उसने धन्या से कहा : 'तू मेरे इस दाहिने हाथ पर रुमाल ढक दे... मैं दर्शन करके आता हूँ।'
धन्या ने उसके तेल-खिचड़ी से भरे हुए हाथ पर रुमाल ढंक दिया । धना गया मंदिर की तरफ-भगवान के दर्शन करने के लिये।
धन्या की आँखे खुशी के आँसू से छलक उठी... वह सोचती है मन ही मन : 'ओह! इतने भूखे थे मेरे पति, फिर भी प्रतिज्ञा का पालन करने में उनकी दृढ़ता कितनी है...? भूखे पेट वे गये दर्शन करने के लिये! साथ ही साथ उनके अंतराय कर्म-पाप कर्म का उदय भी कितना भारी है कि मंदिर जाने से पहले हाथ धोने की उनकी इच्छा नहीं हुई। ठीक है, जिस भावभक्ति से वे मंदिरजी में गये हैं...मुझे लगता है कि आज जरुर जिनालय के अधिष्ठायक देव उन पर प्रसन्न होने चाहिए... मुझे पिछली रात वैसा सपना भी आया है...कि 'हमारे पर अधिष्ठायक देव प्रसन्न हो उठे।'
जिनेश्वर भगवान को एक बार भी भक्तिभावपूर्वक की गई वंदना महान फल देनेवाली होती है, तो फिर प्रतिज्ञापूर्वक हमेशा वंदना करने से क्या कुछ नहीं मिलेगा?'
धन्या ने धना को मंदिर जाने से पहले सूचना भी दी थी कि 'मंदिर में यदि कोई तुमसे कुछ पूछे तो मुझे पूछने के बाद ही जवाब देना।'
धना गया मंदिर में | उसने भावपूर्वक वीतराग भगवान को वंदना की। वह मंदिर के बाहर निकल ही रहा था कि उसने एक दिव्य आवाज सुनी : ।
'ओ धना, आज से मैं तेरा नाम 'धनराज' रखता हूँ। तेरी प्रतिज्ञापालन की दृढ़ता से मैं इस मंदिर का अधिष्ठायक, तेरे ऊपर प्रसन्न हुआ हूँ। बोल, तुझे क्या चाहिए? तुझे जो भी चाहिए, तू मुझ से माँग ले!'
धना ने कहा : 'ओ यक्षराज! मैं मेरी पत्नी को पूछकर तुमसे माँगूंगा। मैं पूछकर वापस लौ, वहाँ तक आप यहीं रुकना।'
यक्ष ने हाँ कही। धना सीधा गया अपने घर पर! धन्या से उसने कहा :
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