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मायावी रानी और कुमार मेघनाद
२९ तो आदमी का जीवन है...| तू इस तरह यदि फिजूल का खर्चा करती रही तो... थोड़े ही दिन में सारा पैसा लुट जायेगा...हम गरीब भिखारी हो जायेंगे!'
धन्या बड़ी चतुर औरत थी। धना की बात सुनकर उसने कहा : __'ठीक है...अब के बाद मैं ऐसा खर्च नहीं करूँगी...आपको जो पसंद होगा वही करूँगी। पर मेरी एक बात तो आपको माननी ही होगी। जिस अच्छे कार्य करने में एक पाई का खर्च नहीं होता हो, वैसा एकाध पुण्यकार्य तो आप भी करो रोजाना! प्रतिदिन जिनमंदिर जाओ... भगवान के दर्शन करो... एक पाई का भी खर्चा नहीं लगेगा! साधु-पुरुषों को वंदन करने के लिए जाओ... उनका उपदेश सुनो... इसमें कहाँ एक पैसे का भी खर्च होगा?'
धना ने कहा : 'नहीं रे...! साधुओं के पास तो कभी जाऊँगा ही नहीं...! साधु तो मीठीमीठी बातें करके मुझे ठग लें...। वो तो कहेंगे..'मंदिर बना...भगवान की मूर्ति बना... साधु को आहार-पानी दे... तीर्थयात्रा कर... गरीबों को दान दे... धर्म की किताबें लिखवा...शास्त्र की पूजा कर...!' और यह सब मैं करूँ तो मेरा सारा धन खतम हो जाये! मैं साधुओं की तो परछाई भी नहीं लूँगा! हाँ...ठीक है... तू कहती है तो रोजाना मंदिर जरुर जाऊँगा दर्शन करने के लिये। क्योंकि भगवान तो कुछ बोलते नहीं हैं...मैं प्रतिदिन जिनेश्वर भगवान के दर्शन करने के बाद में ही भोजन करूँगा...। यह मेरी जिंदगीभर की प्रतिज्ञा है, बस? इसमें एक पैसे का भी खर्चा नहीं है और तू भी खुश रहेगी!' ।
धन्या खुश होकर नाच उठी! उसने कहा...' मेरे स्वामी.. इस प्रतिज्ञा के पालन से आपको जरूर अद्भुत संपत्ति मिलेगी!'
धन्या और धना दोनों आनंद से जिंदगी गुजारते हैं। आपस का प्यार तभी टिकता है जब एक दूसरे का मन प्रसन्न रहे! धना रोज मंदिर मे जाकर भगवान के दर्शन करता है। दर्शन करने के बाद ही भोजन करने बैठता है। एक दिन की बात है।
धना कड़ी मजदूरी करके थका-हारा घर आया था। उसे जोरों की भूख लगी थी। वह सीधा खाने के लिये बैठ गया। धन्या ने बड़े प्यार से उसकी थाली में खिचड़ी परोसी और उसमें तेल डाला।
धना ने हाथ में कौर लिया कि उसे एकदम प्रतिज्ञा याद आ गई, आज
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