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मायावी रानी और कुमार मेघनाद
१९ दिमाग लड़ाया | पर वह भेद नहीं सुलझा सका | उसने दोनों स्त्रियों से कह दिया- 'तुम्हें मुझे भोजन कराने की आवश्यकता नहीं है...। मैं खुद अपना भोजन कर लूँगा । और आज के बाद तुम में से किसी को मेरी सेवा नहीं करनी है।' __ वह भोजन करके अपने तंबू में गया । वह स्वयं अष्टांग निमित्त में पारंगत था। निष्णात था। उसने सच्ची-झूठी पत्नी का भेद जानने के लिये अपने निमित्तशास्त्र से प्रयत्न किया। पर वह निष्फल रहा भेद खोलने में!
दोनों स्त्रियाँ उचित समय पर परमात्मा की पूजा करती थी। दोनों साथ ही भोजन करती थी। दान देती थी...। स्नान वगैरह करती थी। जो क्रिया एक स्त्री करती... दूसरी भी ठीक वैसे ही करती थी।
कुमार मेघनाद दोनों में से किसी भी स्त्री को अपने तंबू में आने नहीं देता है...। वह निराश हो गया। उसने नगर में ढिंढोरा पिटवाया कि 'कोई भी मांत्रिक, तांत्रिक या विद्वान व्यक्ति सच्ची-झूठी मदनमंजरी को पहचान लेगा उसे एक करोड़ सोनामुहरें भेंट दूंगा।' । ___घोषणा सुनकर कई मांत्रिक आये! बहुतों ने मंत्र जाप किये...दोरे-ताजीब किये... धूनी रमाई... पर कोई परिणाम नहीं निकला! कई तांत्रिक आये...जमीन पर आकृतियाँ बनाई... त्रिकोण, चौकोर, षट्कोण...गोल... तरह-तरह के यन्त्र बनाये पर कुछ बात बनी नहीं। कई विद्वान आये... पंडित आये... शास्त्र पलटने लगे... पर भेद नहीं खोल पाये! सभी निराश होकर वापस लौट गये।
कुमार मेघनाद ने एक अन्य उपाय किया। उसने लकड़ी की एक बड़ी पेटी बनायी। उसमें एक ही छेद रखवाया। दोनों मदनमंजरी को भीतर में सुलाया। उसने दोनों से कहा : 'जो स्त्री इस छेद में से बाहर निकलेगी उसे मैं सच्ची मदनमंजरी मानूँगा।'
जो वास्तव में मदनमंजरी थी वह बोली : 'स्वामी, में तो एक मनुष्य औरत हूँ... मैं कैसे बाहर आ सकती हूँ इस छेद में से? जो देव-देवी हो... वो ही इस तरह बाहर आ सकते हैं!' ___ जो झूठी मदनमंजरी थी उसने भी वही बात कही। 'स्वामिन्, मैं तो मनुष्य
स्त्री हूँ... मैं इस छेद में से कैसे बाहर निकल सकती हूँ...? जो देव-देवी हों... वे ही इस छेद में से बाहर आ सकते हैं!'
कुमार की द्विधा का पार नहीं रहा। उसने पेटी खोल कर दोनों स्त्रियों को
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