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मायावी रानी और कुमार मेघनाद
१८ मदनमंजरी ने कहा : 'स्वामी, यह सारा प्रभाव तो आपके प्रतिज्ञा पालन के धर्म का है। अब हम जल्दी-जल्दी अपने पड़ाव पर पहुँच जायें... चूँकि रात की केवल एक घड़ी ही बाकी है... वहाँ पर कहीं सब अपने बारे में चिंता न करने लग जाएँ!' __ दोनों जल्दी-जल्दी अपने पड़ाव में पहुँच गये। दिव्य कटोरे को रथ में ही उचित जगह पर रख दिया। स्नान वगैरह से निवृत्त होकर दोनों ने परमात्मा की पूजा की। दुग्धपान करके तैयार होकर आगे प्रस्थान किया। ___ अभी तो उन्हें पंद्रह दिन तक रास्ता तय करना था। कुमार की इच्छा तो दस ही दिन में घर पहुँच जाने की थी, उसने यात्रा को वेगवान भी बनायी। परन्तु आदमी सोचता है कुछ, और होता है, कुछ और ही! ___ एलापुर गाँव में वे दोपहर को पहुँचे। भोजन के लिये पड़ाव डाला। वहाँ पर एक नई आफत ने आ घेरा राजकुमार और राजकुमारी को! ५. नई आफत में फँसे!
मेघनाद ने मध्याह्नकालीन पूजा वगैरह कार्य किया और जब वह भोजन करने के लिये भोजनालय में गया तो वहाँ पर उसने अजीब-सी बात देखी! वहाँ एक नहीं पर दो मदनमंजरी हाजिर थी। राजकुमार के आश्चर्य का पार नहीं रहा।
- एक सा रूप! - एक सी ऊँचाई! - एक से कपड़े! - एक सी भाषा! - सब कुछ एक सा... सब कुछ समान!
कुमार मेघनाद ने सोचा : 'क्या मेरी पत्नी ने खुद दो रूप रचाये होंगे मेरी सेवा करने के लिये? या फिर मुझे ठगने के लिये किसी व्यंतर देवी ने मदनमंजरी का रूप रचाया होगा? या फिर कहीं मुझे दृष्टिभ्रम तो नहीं हो रहा है? जिससे मुझे दो मदनमंजरी दिख रही है! उसने अपनी आँखें मसली और फिर गौर से देखा...तो फिर भी दो मदनमंजरी ही दिख रही थी! कुमार की बुद्धि बड़ी सूक्ष्म थी। उसने सच्ची मदनमंजरी खोजने के लिये काफी
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