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१४
मायावी रानी और कुमार मेघनाद यह तो धोखा होगा...। इससे बेहतर है, मैं इसे बता कर ही जाऊँ! शादी के वक्त मैने इसका दाहिना हाथ मेरे हाथ में लेकर विश्वास दिया था। इसको मुझ पर कितना भरोसा है...! मैं इसको धोखा कैसे दूँ? राक्षस के पास जाने का कारण भी बता देना चाहिए इसे!'
यों सोचकर उसने मदनमंजरी से सारी बात की। मदनमंजरी तो सुन कर कुमार से लिपट गई... और मासूम कबूतरी की भाँति काँपती हुई बोली :
'नहीं...कुमार...नहीं...मैं तुम्हें जाने नहीं दूँगी! तुम जाओगे तो वापस जिन्दा नहीं लौटोगे! तब फिर मेरे जीने का भी क्या मतलब? मैं भी अपने प्राण त्याग दूँगी! और... मेरी बात जाने दो... तुम अपने माता-पिता के बारे में तो सोचो! उन्हें कितना दुःख होगा? वे भी तुम्हारी जुदाई को सह नहीं सकेंगे...! वे भी प्राण त्याग देंगे! इसलिये अब एक पल की भी देरी किये वगैर यहाँ से हम रात में ही चल दें...| इस जंगल को पार कर लें...!!!'
मेघनाद ने कहा :
‘पर देवी! मैं अपनी प्रतिज्ञा को कैसे तोड़ दूँ? गुणी व्यक्ति अपनी जान की बाजी लगाकर भी दिया हुआ वचन निभाता है। वचन निभाने के लिये चाहे जंगलों में भटकना पड़े...आग में जलना पड़े...राजपाट छोड़ के निकलना पड़े... पर मैं जरुर जाऊँगा उस राक्षस के पास! तू मुझे माफ कर... मैं तेरी बात नहीं मान सकता!'
मेघनाद ने कहा : 'देवी... तु धैर्य रख। यहीं पर रुक । मेरे जाने के बाद यदि रात की अंतिम घड़ी में भी मैं वापस न लौ, तो तू मेरी तलाश करवाना... और फिर तुझे जो उचित लगे वह करना। अभी तो मुझे अकेला ही जाने दे!' कुमार अकेला ही वहाँ से चल दिया-खुद मौत के मुँह मैं, राक्षस के पास!
४. जादुई कटोरा मिला!
राक्षस की दी हुई निशानी के मुताबिक मेघनाद राक्षस के महल में पहुँच गया। वहाँ जाकर उसने राक्षस का अभिवादन करके कहा :
'राक्षसराज! मैंने आपको वचन दिया था कि वापस लौटते वक्त मैं आपके पास आऊँगा। तुम्हारी कृपा से चंपानगरी की राजकुमारी से मेरा ब्याह हो गया है। अब जैसी आपकी इच्छा हो वैसा आप करें।'
राक्षस भूखा था। कई दिनों से उसे आदमी का मांस नहीं मिला था। कुमार
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