________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www.kobatirth.org
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
११
मायावी रानी और कुमार मेघनाद
देवी, यह कुमार महाराजा लक्ष्मीपति के सुपुत्र हैं। ज्ञान-बुद्धि और कलाओं के खजाने जैसे हैं। तुम्हारे महान् भाग्य से प्रेरित होकर ही वे स्वयंवर में बिना निमंत्रण भी पधारे थे। यदि ये न आते तो तुम्हें ऐसे भयंकर स्थान से छुड़वाता कौन?'
राजकुमारी का अंग-अंग सिहर उठा! उसने शरम से नीची झुकी निगाहों से राजकुमार को देखा | मन ही मन उसने कुमार को अपने पति के रूप में मान लिया। उसका हृदय खुशी से नाचने लगा था। अपनी पीड़ा, अपना दुःख, अपनी परेशानी... सब वह जैसे भूल चुकी थी। उसके दिल-दिमाग पर राजकुमार मेघनाद ने कब्जा जमा लिया था।
सैनिकों के सेनापति ने कुमार को नमन करके विनती की : 'महाराजकुमार, अब हमें तनिक भी विलंब किये बगैर चंपानगरी पहुँच जाना चाहिए। यदि देर होगी तो महराजा और महारानी हमारा सबका अपहरण हुआ जानकर, शायद अग्नि में प्रवेश कर दें!'
कुमार ने कहा : ___ 'सभी अपने-अपने गरुड़ पर बैठ जाओ...।' राजकुमारी को मेघनाद ने अपने गरुड़ पर बिठा लिया और गरुड़ आकाश में उड़ने लगा।
चंपानगरी में महाराजा और अन्य सभी स्त्री-पुरुष आकाश की ओर चातक की निगाहों से देख रहे थे। सभी इंतजार की आग में सुलग रहे थे। एक-एक पल जैसे एक-एक बरस सा बीत रहा था।
और...एक खुशी की चीख नीकली...'गरुड़ आये...गरुड़ आये...!' दूर-दूर क्षितिज पर बिन्दु उभरने लगे। देखते ही देखते वे बिन्दु गरुड़ में बदल गये। वे गरुड़ नगरी में उतरने लगे। राजा-रानी दौड़ते हुए राजकुमार के पास पहुँचे। राजकुमारी को देखते ही रानी ने उसे अपने सीने से लगा लिया। राजा ने राजकुमार को अपने उत्संग में खींच लिया। राजा-रानी की आँखे आँसू बहाने लगी।
सैनिकों को विदा करके राजा-रानी कुमार और राजकुमारी को लेकर राजमहल में गये । अन्य राजा और राजकुमार स्वयंवर मंडप में कुमार मेघनाद
और कुमारी मदनमंजरी की राह देखते हुए बैठे थे। स्नान-भोजन वगैरह से निवृत्त होकर राजा ने कुमार व कुमारी को अपने साथ लेकर स्वयंवर मंडप में प्रवेश किया। सभी राजाओं व राजकुमारों ने खड़े होकर उनका स्वागत किया। अभिवादन किया।
For Private And Personal Use Only