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मायावी रानी और कुमार मेघनाद
१० घर वापस न लौटते हुए वहीं पर रुके। राजकुमार मेघनाद राजकुमारी मदनमंजरी को वापस लेकर आये उसके बाद ही वहाँ से जाने का निर्णय किया। ___ मेघनाद सौ सैनिकों के साथ कुछ ही समय में रत्नसानु पर्वत पर पहुँच गया। उसने अपने निमित्तशास्त्र से राजकुमारी किस गुफा में है...यह जान लिया था। सैनिकों के साथ वह गुफा के पास गया । इतने में तो वह राक्षसी विद्या जो कि गीध का रूप लिये खड़ी थी, जोर-जोर से चिल्लाने लगी।
राक्षसी विद्या की आवाज सुनने के साथ ही कुमार मेघनाद के साथ आये हुए सौ सैनिक बेहोश होकर जमीन पर ढेर हो गये!
३. मेघनाद मौत के मुँह में!
राक्षसी विद्या के प्रभाव से अपने सैनिकों को बेहोश हुआ देखकर कुमार मेघनाद गुस्से से तमतमा उठा | उसने एक पत्थर की चट्टान की ओट में खड़े होकर धनुष हाथ में उठाया । धनुष पर शब्दवेधी बाण चढ़ाया और तीर चलाना शुरू किया। इतने तीव्र वेग से वह तीर फेंकने लगा कि पाँच-दस पल में तो गीध पक्षिणी का मुँह तीरों से भर गया।
राक्षसी विद्या का प्रभाव उतरने लगा और वह राक्षसी वहाँ से दूम दबा कर भाग गई।
कुमार के सैनिक अब धीरे-धीरे बेहोशी में से बाहर आ रहे थे। इधर राजकुमारी तो विद्या के चले जाते ही मेघनाद के पास आकर खड़ी हो गई थी। राजकुमारी मेघनाद को जानती नहीं थी। वह जाने भी कैसे? वह तो पहली बार ही मेघनाद को देख रही थी।
बेहोशी दूर होते ही सैनिक खड़े हो गये। उन्होंने राजकुमार को प्रणाम किया। फिर राजकुमारी की तरफ मुड़कर उसे प्रणाम करके बोले :
'राजकुमारीजी, इन राजकुमार मेघनाद ने तुम्हारी प्रतिज्ञा पूरी की है। इन्होंने अपने निमित्तशास्त्र से तुम्हारा सारा वृत्तांत महाराजा के समक्ष भरी राजसभा में कह बताया था। इन्होंने अपनी अद्भुत शिल्पकला का परिचय देते हुए ये लकड़ी के गरुड़ बनाये, जिन पर सवार होकर हम सब यहाँ आ सके। इन्होंने ही शब्दवेधी तीरों की वर्षा करके उस मायावी गीध पक्षीणी को यहाँ से मार भगाई।
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