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मायावी रानी और कुमार मेघनाद ___ 'मैं नगर में जा रहा हूँ। दो-चार घन्टे घूम कर वापस आऊँगा।' यों कहकर वह नगर में घूमने के लिये निकल गया। उसने नगर के चारों तरफ फैले हुए सुहाने बगीचे देखे। अलग-अलग तरह के बड़े-बड़े बाजार भी देखे। स्वच्छ और विशाल राजमार्ग देखे। नगर में चारोतरफ उल्लास और खुशी का नजारा दिख रहा था।
जहाँ चार रस्ते एकत्र होते थे, वैसे चौराहों पर राजा के आदमी नगारे पीटते हुए जोर-जोर से घोषणा कर रहे थे : 'राजकुमारी मदनमंजरी की यह प्रतिज्ञा है कि जो कोई राजा या राजकुमार व्याकरण, ज्योतिष और शिल्पकला में निष्णात होगा, पशु-पक्षियों की एवं मनुष्यों की सभी भाषाओं को जानने वाला होगा...धनुषविद्या वगैरह चौदह विद्याओं में निपुण होगा... उसके गले में राजकुमारी वरमाला आरोपित करेगी।' ___ घोषणा सुनकर मेघनाद को खुशी हुई। उसे अपने नगर में मिला श्रेष्ठिपुत्र सुधन की याद आई। उसकी कही हुई एक-एक बात सच्ची लगी। मेघनाद मन ही मन सुधन को धन्यवाद देने लगा। ___ साँझ की बेला घिरने लगी थी। मेघनाद नृत्यांगना के घर पर वापस लौट आया। वह सोच रहा था : 'कल सबेरे मुझे महाराजा मदनसुन्दर से मिलना होगा । मेरा परिचय देना होगा...। वरना मुझे स्वयंवर में प्रवेश मिलना मुमकिन नहीं होगा!'
रात आराम से कट गयी। सुबह में स्नान-दुग्धपान से निवृत्त होकर, मेघनाद राजमहल जाने के लिये निकला | राजमहल के पास पहुँचा । इतने में उसके कानों पर लोगों का कोलाहल सुनायी देने लगा। घुड़सावार सैनिकों की भाग-जौड़ देखने को मिली । बाहर से आये हुए अनेक राजा और राजकुमारों के चेहरे पर चिंता व उद्ववेग की रेखाएँ उभरी हुई देखी...।' वह जल्दी-जल्दी कदम उठाता हुआ राजमहल पर पहुँचा ।
२. राजकुमारी का अपहरण
राजमहल के विशाल प्रांगण में सुशोभित भव्य स्वयंवर मंडप सजाया गया था। स्वयंवर मंडप में महाराजा मदनसुन्दर, विषाद में डूबा हुआ मुँह लेकर बैठे हुए थे। स्वयंवर के लिये आये हुए करीबन दो सौ जितने राजा एवं राजकुमार भी अपने-अपने आसन पर बैठे थे। सभी के चेहरे पर अनहोनी की आशंका के बादल मंडरा रहे थे। इतने में चंपानगरी के महामंत्री सुबुद्धि ने
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