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मायावी रानी और कुमार मेघनाद
मेघनाद ने घबराये बगैर धीरज के साथ मीठी जबान में कहा : 'राक्षसराज, यह शरीर तो वैसे भी एक दिन जल जाना है। इस शरीर से यदि आपकी भूख शांत होती हो तो ठीक है, आप मुझे खा जाइये! आपको तृप्त करके यदि मैं पुण्य कमाऊँगा और मरूँगा तो मुझे अवश्य अगले जन्म में अच्छी गति मिलेगी। पर मेरी एक बात आप सुन लीजिए। फिर आपको जैसा उचित लगे वैसा आप करना...| अभी मैं चंपानगरी जाने को निकला हूँ...। वहाँ की राजकुमारी मदनमंजरी का स्वयंवर है। मदनमंजरी की प्रतिज्ञा पूरी करके... उसके साथ शादी करके मैं संतोष पाना चाहता हूँ...। राजकुमारी को लेकर मैं इसी रास्ते से वापस लौटूंगा। तब मैं आपके पास आऊँगा और आपकी इच्छा पूरी करूँगा! यह मेरी प्रतिज्ञा है... और ली हुई प्रतिज्ञा का पालन मैं जान की बाजी लगाकर भी करूँगा।' ___ राक्षस तो राजकुमार की बात सुनकर आश्चर्य से ठगा-ठगा सा रहा गया! कुमार की निडरता, धीरता और मीठी वाणी से राक्षस खुश-खुश हो उठा। उसने कहा : 'लड़के... ठीक है... तू जा तेरे रास्ते पर! मेरा वरदान है कि तेरा कार्य अवश्य सिद्ध होगा। यहाँ निकट में ही मेरा निवास स्थान है, तू जब वापस लौटे तो वहाँ जरुर आना।' ।
राक्षस को प्रणाम करके मेघनाद आगे बढ़ा। पाँच-सात दिन में तो वह चंपानगरी में पहुँच गया।
मेघनाद नगर के बाहर नदी के किनारे पर गया। वहाँ उसने आराम से स्नान किया और साथ लाये हुए स्वच्छ-सुन्दर कपड़े पहन लिये । पुराने कपड़े उसने नदी में बहा दिये। __नगर में आकर वह सीधा एक नृत्यांगना के घर पर गया, जहाँ पर कि ठहरने के लिये कमरों की व्यवस्था थी। परदेशी राजकुमार को अतिथि के रूप में आया देखकर नृत्यांगना ने उसका स्वागत किया। राजकुमार ने उसके हाथ में पाँच सोनामुहरें रख कर कहा : 'बहन, मुझे भोजन करना है। भोजन करने के पश्चात मैं दो-चार घन्टे आराम करना चाहता हूँ।'
नृत्यांगना ने कुमार के लिये एक सुन्दर कमरा खुलवाया। उसे बढ़िया स्वादिष्ट भोजन कराया। कुमार ने मखमल-सी मुलायम शय्या पर आराम किया। उसकी थकान दूर हो गयी। जब वह जगा तब स्वस्थ था। उसने नृत्यांगना से कहा :
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