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पराक्रमी अजानंद
१०७ मेरी कोशिश में जरुर सफल होऊँगा और बाघ को राजा बनाने में निमित्त बन पाऊँगा।'
द्वाररक्षक के चेहरे पर अजानंद की बात सुनकर उत्साह की लहर दौड़ आयी | उसने कहा : 'ओ परदेशी, तुम यहीं पर खड़े रहो... मैं जाकर महामंत्री को पूछकर आता हूँ।'
द्वाररक्षक महामंत्री के पास गया और उनसे कहा : 'महामंत्रीजी, एक परदेशी जवान आया है और वह कहता है कि मैं बाघ को पुनः राजा बना सकता हूँ। मुझे उस बाघ के पास ले चलो, तो क्या हम उस परदेशी को आपके पास लेकर आएँ?'
'अरे, जरूर! अभी के अभी उस परदेशी को तुम बड़े आदर के साथ मेरे पास ले आओ।'
द्वाररक्षक अजानंद को लेकर महामंत्री के पास आये। महामंत्री स्वयं अपने आसन से खड़े हो गये | सामने जाकर उन्होंने अजानंद का स्वागत किया और उसे अपने गले लगाया । अजानंद को सुन्दर सिंहासन पर बिठाकर महामंत्री ने कहा : __ 'ओ महानुभाव, हमारे द्वाररक्षक ने आपसे जो कुछ कहा वह सब बिल्कुल सही है, हम सभी पर घोर संकट के बादल छा गये हैं। तुम यहाँ पर चले आये इससे मुझे बहुत खुशी हुई है | मैं तुम्हारी प्रतीक्षा ही कर रहा था क्योंकि मुझे गत रात्रि में समाचार मिल गये थे कि पवित्र पुरुष अजानंद कल सबेरे शिवंकरा नगरी में आयेंगे।'
'अरे! बहुत ही ताज्जुब की बात है! आपको समाचार दिये किसने?' अजानंद ने बड़ी उत्सुकता से पूछा। ___ मैंने अग्निवृक्ष की अधिष्ठायिका देवी की आराधना की थी। उसी देवी ने कृपा करके मुझे स्वप्न में तुम्हारे आने के समाचार दिये और मुझसे कहा कि 'तुम चिंता मत करो। यह अजानंद बड़ा पुण्यशाली है। बाघ बने हुए तुम्हारे राजा को वही पुनः मनुष्य बना देगा।' तब मैंने देवी से पूछा : 'माताजी, यह अजानंद है कौन? अभी वह कहाँ पर है? और हमारी नगरी में वह कैसे आयेगा?'
देवी ने मुझसे कहा : 'यह पुण्यशाली अजानंद देश-विदेश में घूमताघामता पर्यटन के लिए निकला हुआ है। वह इस तरफ आ गया है। एक देवमंदिर में रात्रि विश्राम के लिए वह ठहरा हुआ है। मैं खुद उसे प्रकाश दिखाकर यहाँ ले आऊँगी। तुम निश्चित रहना। इतना कहकर वह देवी
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