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पराक्रमी अजानंद की बात कर रहे हो? यह आज आपको क्या हो गया है?' गंगा की आंखों से आँसू बहने लगे।
उपाध्याय ने कहा : 'तुम्हारी बात सही है देवी, पर जो बेटा बड़ा होकर कुल को उज्ज्वल बनाये...यश को फैलाये...उसे पालपोष कर बड़ा करना चाहिए | यह बेटा तो मेरी सात पीढ़ी की पवित्रता को बरबाद कर देगा! मैंने इसकी जन्मकुंडली बनाई है...और अच्छी तरह जाँची है...इसलिये ज्यादा चूं-चप्पड़ किये बगैर चुपचाप जैसे मैं कहुँ वैसे इसको कहीं पर भी छोड़कर आ जा! हमको ऐसा बेटा नहीं चाहिए!' ___ गंगा को दुःख तो पहाड़ जितना हुआ...उसका दिल तो टुकड़े-टुकड़े हो गया... पर वह अपने पति की आज्ञांकित थी। उसने अपने कलेजे के टुकड़े को गले से लगाया...बार-बार उसके सर को चूमने लगी... माँ के आँसुओं से नवजात शिशु भींग गया।
रात के समय बच्चे को हाथों मे उठाकर गंगा अपने घर से निकल कर एक निर्जन रास्ते के किनारे पर आई...एक मुलायम कपड़े में लपेट कर बच्चे को किनारे पर छोड़ कर गंगा चुपचाप रोती-बिलखती घर लौट आई।
जिस रास्ते पर गंगा का बेटा पड़ा हुआ था, उस रास्ते पर से एक बकरी गुजर रही थी। पीछे-पीछे उसका मालिक वाग्भट्ट चला आ रहा था। बकरी गंगा के बेटे के पास आकर रुक गई। न जाने क्या हुआ... बकरी के आंचल में से दूध झरने लगा... वह भी सीधा बच्चे के चेहरे पर...बच्चे ने धीरे से अपना नन्हा मुँह खोला...दूध की धारा उसके मुँह में गिरने लगी... बच्चा दूध पीने लगा...जैसे अपनी माँ का दूध पी रहा हो!
वाग्भट्ट तो यह दृश्य देखकर चकरा गया। उसने बच्चे को देखा। बच्चा सुन्दर था...खूबसूरत था | प्यारा सा लग रहा था । वाग्भट्ट को बच्चा पसंद आ गया। उसने बच्चे को अपने हाथों में उठाया...और उसे अपने घर पर ले आया । वाग्भट्ट को कोई बच्चा नहीं था। उसने अपनी पत्नी से कहा :
'अरी... जरा देख तो सही... मैं तेरे लिए क्या लेकर आया हूँ!' यों कहकर उसने बच्चा अपनी पत्नी के हाथों में दिया।
'अरे...तुम यह किसका बेटा ले आये हो? कितना प्यारा लगता है...चाँद के टुकड़े जैसा है...' बच्चे को अपने सीने से लगाते हुए वाग्भट्ट की पत्नी बोल उठी।
'ऐसा मान ले कि...भगवान ने अपनी बात सुन ली... और हमको यह बेटा दे दिया!' यों कहकर कैसे उसको बच्चा प्राप्त हुआ... यह बात बताई।
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