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पराक्रमी अजानंद
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८. पराक्रमी अजानन्द
१. कुमार अजानन्द
चन्द्रानना नाम की एक सुन्दर नगरी थी।
वहाँ की प्रजा सुखी थी। लोग धार्मिक थे।
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उस नगर में चन्द्रापीड़ नाम का राजा राज्य करता था । वह बड़ा शूरवीर था। दुश्मनों के लिये वह साक्षात् यमराज था । पर अपनी प्रजा पर उसे बहुत प्यार था। सभी के सुख-समृद्धि का उसे ख्याल रहता था ।
उस नगर में एक धर्मोपाध्याय नामक ब्राह्मण रहता था । उसकी पत्नी का नाम था गंगादेवी। गंगादेवी सचमुच गंगा की भाँति पवित्र थी । मृदु-मधुर स्वभाववाली औरत थी ।
एक दिन गंगा ने एक सुन्दर - सलोने पुत्र को जन्म दिया । धर्मोपाध्याय खुद ज्योतिष का पंडित था । उसने अपने बेटे की जन्मकुंडली बनायी । जन्मकुंडली बनाकर उसके भविष्य के बारे में जब वह सोचने लगा तो चौक पड़ा। उस कुंडली में राज्य और लक्ष्मी देनेवाले पाँच ऊँचे-ऊँचे ग्रह थे । 'अपना बेटा राजा बनेगा...' यह सोच कर धर्मोपाध्याय को खुशी नहीं हुई। बल्कि दिल-दिमाग उदास उदास हो उठा। वह सोचने लगा : 'मेरा बेटा एक न एक दिन राजा बनेगा... उसकी किस्मत में राज्य लिखा है ... वह कभी वेदों का अध्ययन नहीं करेगा... ब्राह्मण का बेटा बनकर भी वह पवित्र जीवन नहीं जी पाएगा ! तरह-तरह के पाप करके वह जरूर नरक में जाएगा...राजा बनेगा तो कभी युद्ध करेगा...लड़ाई करेगा... किसी को फाँसी देगा... कितने पाप करेगा! उसके बेटे भी वैसे ही होंगे। यह मेरा बेटा होकर मेरे कुल का सत्यानाश कर डालेगा। अच्छा यही होगा कि मैं आज ही उसका त्याग कर दूँ ।'
उसने अपनी पत्नी से कहा :
‘देवी, इस पुत्र का हम अभी इसी वक्त त्याग कर दें...'
गंगा तो बेचारी यह सुनकर बावरी सी हो उठी... वह अपलक आँखों से अपने पति के सामने ताकती रही... उसने कहा :
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'यह आप क्या कह रहे हो ? चिंतामणी रत्न और पुत्ररत्न तो एक से होते हैं... महान पुण्य के उदय से पुत्र की प्राप्ति होती है और आप उसे छोड़ देने