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जीव और शिव
७. जीव और शिव
यह कहानी है काशीनगर की! जितनी मजेदार है उतनी ही प्रेरणाप्रद और आदर्शपूर्ण! काशीनगर में एक वैद्य रहता था। उसका नाम था देवदत्त!
देवदत्त यानी देवदत्त! मरते हुए मनुष्य को भी जिन्दा कर दे वैसा वैद्य था। नगर का राजा जितशत्रु भी देवदत्त वैद्य को मानसम्मान व इज्जत देता था। पूरे काशी राज्य में देवदत्त का काफी रुतबा था। लोग उसकी दवाई के लिए दूर-दूर से आते थे।
पर एक दिन ऐसा हुआ...औरों को जिन्दा करनेवाला वैद्य यकायक मर गया। काशी में पहुंचे हुए वैद्य की कमी हो गयी।
राजा जितशत्रु ने देवदत्त की पत्नी को बुलाकर पूछा : 'बहन, तेरे दो बेटों में से कोई बेटा उसके पिता की जगह संभाल सके वैसा विद्धान और अनुभवी है सही? यदि है तो मैं उसे राजवैद्य के रूप में नियुक्त कर दूँ!'
देवदत्त की पत्नी जमना ने इन्कार कर दिया। राजा जितशत्रु ने दूसरे राज्य से एक प्रसिद्ध वैद्य को निमंत्रित करके बुलवाया और राजवैद्य के रूप में नियुक्त कर दिया।
वह नया वैद्य हमेशा देवदत्त के घर के आगे होकर राजसभा में जाया करता था। उसे देखकर जमना बेचारी ठंढ़ी आहें भरती थी.
'ओह... मेरे दोनों बेटे मूर्ख और गँवार से हैं... वरना उनके पिता का स्थान इस तरह दूसरे के हाथों में थोड़े ही जाने देते?'
एक दिन तो जमना का दिल काफी भर आया। वह रोने लगी। उसके दोनों बेटे खेलने के लिए बाहर गये हुए थे। वे जब वापस लौटे तो उन्होंने अपनी माँ को रोते देखा...माँ से पूछा :
'माँ, तू क्यों रो रही है?' । 'रोऊँ, नहीं तो क्या करूँ? तुम दोनों कैसे मूर्ख पैदा हुए हो? न तो पढ़ते हो, न ही कुछ सोचते हो... तुम्हारे पिता को राजा कितना धन देता था...सम्मान और इज्जत देता था! अब वह सारा मान-सम्मान और धन-दौलत एक परदेशी वैद्य को मिलता है! यह सब सोचते-सोचते मुझे रोना आ गया!'
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