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जीव और शिव
९० 'राजन्, सूरज किसकी प्रेरणा से पृथ्वी को प्रकाश देता है? बादल किस के कहने से बरसते हैं...? लोगों को पानी देते हैं? यह उनका स्वभाव ही है...। इसी तरह उत्तम पुरुषों का परहित करने का स्वभाव ही होता है।'
राजा ने कहा : 'सचमुच जैनधर्म उत्तम धर्म है।' जिनदत्त सेठ ने कहा : 'राजन्, महान पुण्य के उदय से ही जैनधर्म मिलता है।'
रूपादेव ने वहाँ पर रंगबिरंगे फूलों की वृष्टि की। करोड़ों सोनैये बरसाये । सुगंधित पानी के छींटे डाले... और जिनदत्त सेठ का बहुमान किया।
राजा पद्मोदय धर्म के अचिन्त्य प्रभाव से वैरागी हो गया। उसने दोनों हाथ जोड़कर गुरुदेव से कहा :
'सचमुच, धर्म की महिमा बड़ी भारी है। सर्प भी फूलों की माला में बदल जाता है... तलवार रत्नों का हार बन जाती है...जहर भी अमृत हो जाता है...शत्रु मित्र बन जाता है... और देव भी चरणों में झुकते हैं।'
राजा ने, मंत्री ने, और जिनदत्त सेठ ने गुरुदेव श्री जिनचन्द्रसूरिजी के चरणों में दीक्षा ग्रहण की।
रूपादेव ने उन सबको भावपूर्वक वंदना की और वह देवलोक में चला गया।
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